रामचन्द्रिका सटीक । की माला पहिरे है " तारो निर्मलमौक्तिक मुक्ता शुद्धावुचनादे इत्यभिधान चिन्तामणिः" औ अगद जो विजायठ है तेहि भादि दै जे भूषण है तिन सों युक्त है औ मध्यदेश जो कटि है सो है केशरी कहे सिंहको ऐसोजाको श्री सुष्टु जो गज है अर्थ जो अतिललित चाल चलत है ताकी ऐसी गति है भाई कहे नीकी जाकी औ विग्रह कहे शरीर है अनुकूल कहे यथोचित सब कहे पूर्ण अर्थ जैसो जौन भग चाहिये तीन अंग तैसोई है अथवा अनुकूल कहे हित है सबको अर्थ जे देखत हैं साको मन वश हैनात है। अथवा अनुकुल कहे व्याधिरहित “ गात्र वपुः सहनन शरीरं वर्म विग्रह | इत्यमरः" औ लक्ष लक्ष जे ऋक्ष नक्षत्र हैं गन कहे जो बल सौंदर्य है तेहि | सहित जो ऋक्षराज चन्द्रमा है ताके सदृश है मुख जाको अर्थ जय अनेक लक्ष नक्षत्रनकी शोभा लैकै चन्द्रमा आपु धारण करै तब जाके मुखके सम होय " ऋक्षस्तु स्थानक्षत्राक्षमल्लयोरित्यभिधानचिन्तामणि: " रावण की मीच कैसी है कि कुन्त जो परछी है सो है ललित कहे लचकति जाकी अर्थ घरछी हाथमें लिये हैं अथवा कुतल जो भाला है सो है ललित कहे अतितीक्ष्ण जाको अर्थ हथियार को धरे हैं " कुंतलो भलकेशयोरित्यमि धानचिन्तामणिः" औ नील कहे श्यामवर्ण है औ भृकुटी भौंह हैं धनुषसम विकराल जाकी इहां कवि र स्त्री करि वर्णत हैं तासौं भौंहनकी धनुषकी क्रूरता धर्म करि साम्य जानो श्री नयन है कुमुद कहे कुत्सित है मुद श्रा- नंद जिनमें ऐसे हैं जाके अर्थ रावण के वधको आनद है विभीषण के राज्य लाभादि उत्सव को मानद नहीं है अथवा नयन हैं कुमुद कहे मुद जो आनद है प्रसन्नता इति तासों रहित अर्थ अतिकोपलो अरुण अतिथि कराल हैं प्रशस्त नहीं है औ कटाक्ष हैं बाणसम कराल जाके नौ सवल कहे बुद्धिबल सहित सदा हैं इहां बलपदते घुद्धि बल जानौ अर्थ घद्धिबल | सौ सीताहरणादि कार्य कराइ रामचन्द्रसों विरोध कराइ दियो तार कहे उच्चस्वर फरिकै सहित है मुग्रीवा जाकी सुष्टुपदको अर्थ यह कि ऐसो उच्चस्वर फरिषेकी शक्ति और कारकी ग्रीन में नहीं है औ अगद जा विजा यठ हैं तेहि आदि भूषण कहे नहीं हैं अर्थ मुडमालादि क्रूर भूषण पहिरे है औ मध्य कहे अधम अनुत्तमेति है देश कहे जाके अंग " मध्यं विलग्ने न स्त्री स्यादन्याय्येऽन्तरेधमेपि चेति मेदिनी" औ केशरी जो सिंह है वाको गजपर ऐसी गति भाई है जाको अर्थ जैसे गजके मारिबेको सिंह
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