पृष्ठ:रामचंद्रिका सटीक.djvu/१६७

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रामचन्द्रिका सटीक। अर्थ इद्रकी शत्रुतासों मानो पर्वतन देवपुरी को घेरिलियो है देवपुरी सहश स्वर्णकोट है जाके मध्यमों पुरी है औ ताके आसपास ताम्रादि के कोट है ते पर्वत समान हैं यासों या जनायो कि लका देवपुरीसम है ४४ ॥ इति श्रीमजगजननिजनकजानकीजानकीजानिप्रसादाय जनजानकीप्रसाद निर्मितायारामभक्तिप्रकाशिकाया पश्चदश प्रकाश ॥ १५ ॥ दोहा । यह वरणन है षोड़शे केशवदास प्रकाश ॥ रावण अगदसों विविध शोभित वचन विलाश १ अगद कूदि गये जहां आसनगत लकेश ॥ मनु मधुकर करहाटपर शोभित श्यामलवेश २ प्रतीहार-नराचछंद ॥ पढो विरचि मौन वेद जीव शोर छडिरे । कुबेर बेर कै कही न यक्ष भीर मंडिरे ॥ दिनेश जाइ दूरि बैठि नास्दादि सगहीं। न बोल चद मंद बुद्ध इंद्रकी सभा नहीं ३ चित्रपदाछद ॥ अगद यों सुनि बानी। चित्त महारिस पानी ठेलिकै लोग अनेसे।जाइ सभामहें वैसे ४ हरिगीतिका छंद ॥ कौन हो पठये सो कौने ह्यां तुम्हें कह काम है । अंगद ॥जाति वानर लंकनायकदूत अंगद नाम है ॥ रावण ॥ कौनहै वह बांधिकै हम देह पूछ सबै दही। लफजारि सँहारि अक्ष गयोसो बात वृथा कही ५॥ १ श्रासन में गत कहे बैठौ २ रावण के सभा भवन में जाइ अगद ऐसे कौतुक देखत भये प्रतीहार या प्रकारके अनादरपूर्वक वचन ब्रह्मादिसों कहत है हे कुबेर ! तुमसों कैयोबार कहो कि तुम यक्षनकी भीरको न मंडी अर्थ यक्षनकी भीरको संगलै इहां न पायो करो सो तुम पाइयो करत हौ ३१४ लकनायक विभीषण ५ ॥ महोदर ॥ कौनभांति रहौ तहां तुम राजप्रेषक जानिये। लंक लाइगयो जो वानर कौन नाम बखानिये ॥ मेघनाद 'जो बांधियो वहि मारियो बहुधा तबै । लोकलाज दुखो रहै