पृष्ठ:रामचंद्रिका सटीक.djvu/१६८

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रामचन्द्रिका सटीक। अति जानिजे न कहां अब रावण ।। कौनके सुत बालिके वह कौन बालि न जानिये । कांखचापि तुम्हें जो सागर सात न्हात बखानिये ॥ है कहां वह वीर अगद देवलोक बताइयो । क्यों गयो रघुनाथबाणविमान बैठि सिधाइयो ७ लकनायक को विभीषण देवदूषणको दहै । मोहिं जीवत होहि क्यों जग तोहिं जीवत को कहै।मोहिं को जगमारि है दुर्बुद्धि तेरिय जानिये । कौन बात पठाइयो कहि वीर वेगि बखानिये ८ अंगद-सवैया ।। श्रीरघुनाथको वानर केशव आयोहो एक न काहू योजू । सागरको मद झारि चिकारि त्रिकूट को देह विहार छयोजू ॥ सीय निहारि सँ- हारिक राक्षस शोक अशोकबनीहि दयोजू । अक्षकुमारहि मारिकै लंकहि जारिक नीकेहि जातभयोजू॥ महोदर पूंछो कि तुम तहा कौन भांतिसों रहत हो अर्थ कौने कामके अधिकारी हौ तब अगद कहो है हम राजा के इहा प्रेषक कहे यथोचित स्थान में दूतन के पठावनहार हैं अर्थ दूतन के नायक हैं लाकलाज दुरचो | रहै या कहि अगद या जनायो कि हमारे सैन्यमें ऐसो कोऊ नहीं है जाको कोहूँ बांध्यो मारयो होइ ६ । ७ पाछे अगद कया है कि हम लकमायक के दूतहैं सो रावण पूछयो कि लक नायक को है जाके तुम दूतहौ तब अगद कया है कि विभीषण लकनायक है कैसो है विभीषण जे देवतनके दूषण कहे पीड़ा करनहार है तिनको दहै कहे जारत है यामों या जनायो कि | तुमहूँ देवदूषणही तुमहूँ को दहिहै ८ सागर के मद रह्यो कि हमको कोऊ निनाधिशफिक मो नाधिकै नामरको कारिडायो अर्ब दुरि फरयो भौ चिगरिक गणिक त्रिमगाम जा लकापुरी का पर्वत है नाके नेह म अर्थ मन परत भरे ग पिदार करे न केमकार मौ पुरी के श्री भागनि दखिो पो को रहत भयो । गगोदकबद ॥ राम राजान के रान आये हा धाम तेरे महाभाग जागे अवै । देवि मदादरी कुभकर्णादि दै मित्र O % PER NOT