रामचन्द्रिका सटीक। पालिके वध करिये सकम्प कियो सो वध करिधोई कियो तैसे वे तो हमारे मारिबे को संकम्प कर हैं यह सकल्प प्रथा काहू उपायसो न है है। तासों मैं लक्ष्मण सहित रामहिसों सहौँ कहे सहार नाशको प्राप्त होतहौं अर्थ लक्ष्मण सहित राम मोहिं मारतही हैं नाहीं तो ऐसो हित सीख तुम को दियों है जासों सष वानरनको राजा तुमको करौं अर्थ सुग्रीव सों छोरि तुम्हारो राज्य तुम्हें देउँ अथवा जनकघातक जे सुग्रीव है तिनकी बात तथा कहतही अर्थ जो तुम्हारे पिताको मारयो ताकी बड़ाई पृथा करत हो मैं लक्ष्मण सहित राम करिफै सहरौं कहे नाश को प्राप्त होतही नाही तो सुग्रीव को मारि सब वानरनको राजा तुमको करौं १६ ॥ अगद-निशिपालिकाछद ॥ शत्रु सब मित्र हम चित्त पहिचानहीं। दूतविधि नूत कबहू न उर ओनहीं ॥ पापु मुख देखि अभिलाष अभिलाखहू । राखि भुज शीश तब और कहें राखहू २० रावण-इद्रवज्राछद ॥ मेरी बड़ी भूल सो का कहोरे । तेरो क्ह्यो दूत सनै सहारे ॥ वै जो सवै चाहत तोहिं मारयो । मारों कहा तोहिं जो देव माखो २१ अगद-उपेंद्रवजाबद ॥ नराच श्रीराम जहीं धरेंगे। अशेष माथे कटि भू परेंगे | शिखा शिवा श्वान गहे तिहारी। फिर चहोर निरैविहारी २२ ॥ तुम्हारी जो यह नत कहे नवीन दूतनिधि कहे दूतता तोर फोर है नाको कबहू न उरम आनिई पाइ है २० । २१ नराग बाण निरविहारी रात्रणको सरोधन है अगवा शिवा श्री श्वान औ और जे निरैत्रिधारी कासादि है ने निहारी शिखा गह निधार शिरको लिय फिरेंगे ०२॥ राण-भुजगप्रयातबद || महामीचु दासी सदा पाइँ धोवै। प्रतीहार के कृपाशर सोवे ॥क्षपानाथ लीन्हें रहे छत्र जाको । करेगो कहा शत्रु सुग्रीव ताको २३ शका मेघमाला शिसी पाककारी। करै कोतवाली महादंडधारी॥ पढे वेद ब्रह्मा सदा द्वार जाके। कहावापुरो शत्रु सुग्रीन ताके २४ ॥
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