पृष्ठ:रामचंद्रिका सटीक.djvu/१७१

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रामचन्द्रिका सटीक। १६६ कवित्वमें क्ति मेघनाद की है औ जवाब रावणको अगद दियो ता जवाबही सोयाजानो कि रामचन्द्र सिंधुवधनादि सम शभुधनुषभग चेटक ही सों कियो है यह बात रापण कयो है अगद कहत हैं कि प्रभु जे रामचन्द्र हैं तिन चेटकसों धनुषभग कीन्हों औ तुम कहतहौ कि जीरण कहे पुरानो रहै परतु तुमको पुरानो तौ रहै पै बाणसमेत तुम पराक्रम कारि पचिकै कहे थकिकै रहिगये ताहू पर थलहू न छोड्यो अर्थ रच न उठ्यो १५ | नील सुखेन हनुमान् औ नल औ सुग्रीव श्री राम लक्ष्मण औं विभीषण ये जे पाठ है सरस्वती उतार्थः॥ नील सुखेनादि चारि वानर उनके सुग्रीव के है ते पालिके भयसों भागे रहैं तब तिनहीं के सग रहे यासों या जनायो कि जो रामचन्द्र प्राज्ञाहू करें औ मोहसों वै तिहारो राज्य न दियो चाहैं तौ सब पानर तेरेई साथी है हैं तासी तू पाठहू आठदिशा बलिद के रामचन्द्र हैं आठ दिशनके आग ने इद्रादि दिक्पाल हैं ते हैं बलिद कहे | भेंटके दाता जिनको अर्थ इद्रादि दिक्पाल जिनेको भेंटदेत हैं तिनहीं सौं आफ्नो पद जो राज्य है ताको ले जाके लिये सुग्रीव तिहारे पितुको मारि डारयो है काहेते राज्य तिहारे पिताको है रामचन्द्र मर्यादा पुरुषोत्तम हैं जो सू कहि है तौ तोको विशेष देखें "बलिदैत्योपहारयोरित्यभिधानचिन्ता मणि" अपमारे कहे जे तेरे पाप को मारयो है १६ ॥ १७॥ अगद ॥ इनको बिलगुन मानिये कहि केशव पल आधु ॥ पानी पावक पवन प्रभु ज्यों असाधु त्यों साधु १८ | रावण-तुतविलंबितछद ॥ उरसिं अंगद लाज कळू महौ। जनक्रघातक बात वृथा कहौ ॥ सहित लक्ष्मण रामहिं स- हरौं । सकलवानरराज तुम्हें करौं १६ ।। बिलगु कहे द्वेष साधु कहे भलो असाधु कई बुरो १८ जनक पिता सरस्वती उतार्थः ।। हे अगद, सुम राचमन्द्रसां मिलिबेको हमको कहत हो यामें तुमको कछू लाज नहीं होति ऐसी बात कहि कळू लाज तौ उरम गहों काहेते कि तुम्हारे जनक बालि तिनके से घातक रामचन्द्र हैं तिनकी बात पृथा है यह तुम कहो अर्थ रामचन्द्र की बात वृथा नहीं होति जो मनमै सकल्प करत हैं, सो करिषोई करत हैं यासों या जनायो कि अतिबली --