१७२ रामचन्द्रिका सटीक । वानराली कहौं बात तोसों । सो कैसे लरै राम सग्राम मोसों २६ अंगद-विजयछंद ॥ हाथी न साथी न धोरेन चेरे न गाउँ न ठाउँको ठाउँ बिलैहै । तात न मात न पुत्र न मित्र न वित्त न तीय कहीं सॅगरेहै। केशव कामको राम बिसारत और निकाम न कामहिं ऐहै। चेतिरे चेति अजों चित अंतर अंतकलोक अकेलोइ जैहै २७॥ रामचन्द्र के राज्याभिषेक को एतो षडो उत्सव तामें भरत घरमें नहीं रहे सो सुनिकै रावण याही समुभयो कि परक्षर स्वाभाविक बंधुविरोष समुझि भरतकृत अभिषेकोत्सव भंग भयसों भरत को दशरथ निकारि दियो है है सो कहत, हैं कि निकारों जो भैया भरत है ताने पिता कारकै दियो राज जाको कादिक कहे देश सों निकारिकै लै लीन्हों ताको कहा पास कहे रहै प्राशय यह कि जा भयसों दशरथ भरतको निकारिफै रामचन्द्रको राज्य दियो सोई आपने पलसों भरत रामचन्द्रसों छोरि लीन्हों भी देशों निकारि दीन्हों तो जिनसों पिता को दियो राज्य न राखत बन्यो ते हमको मारिकै कहा हमारी राज्य छोरि हैं औ ताहू पर सैन्य वानर को लिये हैं औ वेष यती को धरे हैं यतिन को श्री वानरन को काम लरिचे को नहीं है सरस्वती उतार्थः संकल्प करिकै जो रामचन्द्र हमारो राज्य लियो औ हम करिकै निकारो जो भाई विभीषण है ताको दियो है ता पातको कहा हमारे अत्रास है अर्थ घड़ो बास है यह हम निश्चय जानत हैं कि रामचन्द्र को सकल्प निष्फल न है है हमसों राज्य छोरि विभीषणको दे हैं और कहे अग्नि ताकी माली कहे समूह अर्थ जिनमों अति अग्नि है ऐसे पाण लिये है अथवा र कहे तीक्ष्ण जे बाण है तिनकी पाली कहे पनि समह इनि निनो लिये हैं सो रामचन्द्र के सग्राममों मोसों को हम एगो गाणी मे जुर अर्थ हम उनके युद्ध करने लायक नहीं हैं "स्नाटणे दान इत्यभिधाननिन्तामणि ॥ पुस्यालिशिदाशय त्रिए स्त्रिया यस्याया सेतो पत्रौ च कीर्तिना इत्यभिधानचिन्तामणि. "२६ वित्त धन २७ ॥ रावण-भुजगप्रयातछद ॥ डरै गाह विप्रै अनाथै जो
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