पृष्ठ:रामचंद्रिका सटीक.djvu/१८०

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१७८ रामचन्द्रिका सटीक। एकै सदा साधि जाने । बली बेनु ज्यों आपुही ईश माने ॥ करै साधना एक परलोकही को । हरिश्चंद्र जैसे गये दैमही को २२ दुई लोकको एक साधै सयाने । विदेहीन ज्यों वेद- बानी बखाने । नठे लोक दोऊ हठी एक ऐसे । त्रिशंकै हँसै ज्यों भलेऊ अनैसे २३ दोहा ॥ चहूंराजके मैं कहे तुमसों राज चरित्र ॥ रुचै सो कीजै चित्तमें चिंतहु मित्र अमित्र २४ चारिभाति मत्री कहे चारिभांतिके मत्र ॥ मोहिं सुनायो शकजू शोधि शोधि सब तत्र २५ ॥ जो कोऊ तुम्हारे हितकी वास कहत है तासों कहे ता पाणी को तुम दुखदा कहे दुखदायक कहत हो अथवा दुखदानी कहे कटुवाद' कहत हो भी दांव कुदार कहे समय कुसमयको गुनत नहीं हो अर्थ जा समयमों जो करितो सचित है ताको विचार नहीं करत हो आपने मनहीं की करत हो वासों अथवा दांवको नहीं गुनत हौ बहुधा कुदावही को गुनत हौ तासों सुधि जे सुबुद्धि हैं मत्रीजन ते मौनभाव को साधत हैं कहे चुप है है २०१२ | २२ ॥ २३ मित्र को दिन अमिन रहे अदिन की चिंता करो सि पौन चरित्र हमको हित है कौन अहिन है अथवा सर मचिन मन रुन्यो है नामें मिन अमित्ररी चिता फरों कि कौन हितकी कहत है भी कौन अहिनकी कहन है ५४ चारि भातिक मत्री है श्री चारि भाी के मत्र होत है तन कहे मिद्धात अधमरा नशाख २५ ॥ छप्पै ॥ एकराज काज हत निजकारज काजे। जैसे सुरथ निकारि सबै मत्री सुससाजे । एक राजके काज आपने काज विगारत।जैसे लोचन हानि सही कवि वलिहि निवारत ॥ यक प्रभु समेत अपनो भलो करत दाशरधिदूत ज्यों। यफ अपनो प्रभुको बुरो करत रावरो पूत ज्यों २६] दोहा ॥ मंत्र जो चारिप्रकारके मत्रिन के जे प्रमान ॥ विपसे दाडिम वीजसे गुडसे नींव समान २७ चद्रवर्त्मछद ॥ राज-