नामचन्द्रिका सटीक । १७७ जे गरुड़ हैं तिनके तुम स्वामी हौ यासों या जनायो कि तुम्हारे बाहन जे गरुड़ है ते अनेक सर्प भक्षण करत हैं श्री पभगशायी कहि या जनायो कि तुम सदा सर्पही पर सोयो करतही ते तुम नागपाश में बांये हो तो काल जो समय है ताकी चाल कछू जानि नहीं परति बलाबल समयही 'नत उन्नत को उन्नत नत करत है इति भावार्थ १३ । १४ ॥ राम-स्वागताछद ।। पनगारि तबहीं तहॅ आये । व्याल जाल सब मारि भगाये ॥ लेकमांझ तवहीं गइ सीता। शुभदेह अवलोकि सुगीता १५ गरुड-इद्रवज्राचद ॥ श्री रामनारायणे लोककर्ता । ब्रह्मादि रुद्रादिके दुखहर्ता । सीतेश मोको कछू देहु शिच्छा । नान्ही बडी ईश जो होइ इच्छा १६ राम ॥ कीबे हुतो काज सबै सो कीन्हों। आये हहां मोकह सुक्ख दीन्हो ॥ पालागि वैकुंठप्रभाविहारी । स्वलोकगो तत्क्षण विष्णुधारी १७ इद्रयजाछंद ॥ धूम्राक्ष आयो जनु दंडधारी। ताको हनुमंत भये पहारी॥जितेथ कपादि बलिष्ठ भारे। सग्राममें भगद वीर मारे १८ उपेंद्रवजा छद ।। अकंप धूम्राक्षहि जानि जूझ्यो । महोदरै रावण मत्र बूभन्यो । सदा हमारे तुम मंत्रवादी। रहे कहो वै प्रति ही विषादी १६॥ १५ । १६ । १७ छद उपजाति है १८ विषादी कहे दुःखी अंदा सीन इति १६॥ महोदर ॥ कहै जो कोऊ हितवंत बानी। कहो सो तासों अतिदुःखदानी ।। गुनो न दांव बहुधा कुदा ।। सुधी तबैं साधत मौन भाव २० कहो शुकानार्य सुहौं कहाँजू । सदा तुम्हारी हित संग्रहौंजू ॥ नृपाल भू मैं निधि चारि जानों। सुनो महाराज सबै वसानों २१ भुजगप्रयाता॥ यहै लोक Retur TW Wate
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