रामचन्द्रिका सटीक । १८६ जा समप है ताकी जो कुचालि कहे प्रतिकूलता है तामें चालि कहे चाल युद्धादि उत्कट कर्मरहित विचारयुक्त निज हितसाधक कार्य कृत्य के पूर्व नाही चल्यो को अब नाहीं चलत अर्थ जे पूर्व भये हैं तिन चन्पो है अब जे | होत जात हैं ते चलतहैं जब आफ्नो समय टेढो होत है तब शत्रुमिलनादि कार्य करि गौं साधियो अनुचित नहीं है इति भावार्थः ॥ अथवा कालकी जो कुचालि है ताकी जो चालि कहे चालुहै अर्थ जब आपनो काल प्रति कूल भयो ता समयमों जो कार्यसाधक उचित चाल है १५ ॥ विष्णु भाजिभाजि जात छोड़ि देवता अशेष । जाम- दग्नि देखिदेखि केन कीन नारि वेष ॥ ईश रामते बचे बचेक वानरेश बालि कैंचलीन कोचलेन कालकी कुचालि चालि १६ विजया ॥ रामहिं चोरि न दीन्हीं सिया जितके दुख तो तप लीलिलियो है। रामहिं मार न दीन्हों सहोदर रामहि श्रावन जान दियो है ॥ देह घखो तुमहीं लगि आजु लौं रामहिके पिय ज्याये जियो है। दूरि कसो दिजता दिज देव हरेही हरे आततायी कियो है १७ ॥ कालकी कुचालिमें चालु फैं चलीहै सो कहत हैं देव दानवनके युद्ध में देवतनके सहायको विष्णुजात हैं परतु जब जानत हैं कि दैत्यनको समय सहायक है हमको कुटिल है हम इनसों न जीति हैं तब यशकी सुधि भुलाइ आपने माणन की रक्षाके लिये भागिजात हैं या प्रकार कैयो बारकी कथा पुराणन में प्रसिद्ध है यासों या जनायो कि विष्णुलों बली कोऊ नहीं है | तेज समय विचारि गौं साधिजात हैं भी जामदग्नि जे परशुराम है तिनको देखिकै के क्षत्री नारि को घेष नहीं पस्यो यासों या जनायो कि जब परशुराम को समय रह्यो तब बड़े २ क्षत्री समय विचारि नारि को वेप धरि जीव बचायो भी तेई परशुराम ताही क्षत्रीवंश में उत्पन जे रामचन्द्र हैं। तिनको समयपली विचारि आपनो धनुष बाण दैहेतु करचो तासों हे ईश! रामचन्द्र को समय बली है सो सीताको दैक हेतुरूपी जो पचि को उपाय है तासों बचो काईते पालि वली रहे तिन बचिये को उपाय न कियो ते न यचे मारेदी गये चौथो तुमको अर्थ पाछेके छन्में कमो है १६ भावनजान
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