१६० रामचन्द्रिका सटीक । | दियो अर्थ युद्धगडल में प्रावन दियो फेरि युद्धमडल सो फिरि जान दियो | स्त्री हादिक छ: आततायी कहावत हैं यथा भागवते "अग्निदो गरदश्चैव शस्त्रपाणिर्धनापह । क्षेत्रदारापहश्चैव षडेते आतनापिन. " आततायी बामणहूँ होइ ताके वधसों ब्रह्मदोष नहीं है तासों १७ ॥ दोहा।। सधि करो विग्रह करो सीताको तो देह ॥ गनौ न पिय देहीनमें पतिव्रताकी देह १८ रावण-विजया॥ हौं सतु छोडि मिलौं मुगलोचनि क्यों क्षमिहैं अपराधनये । नारि हरी सुतबांध्यो तिहारेहौं कालिहि सोदर सॉगिहिये।वामन मांग्यो त्रिपैग धरा दक्षिणा बलि चौदह लोक दये । रचक वैरहुतो हरिवंचक बांधि पताल तऊ पठये १६ दोहा ॥ देवर कुंभकरवसों हरिअरिसों सुत जाइ ॥ रावणसों प्रभु कौन को मंदोदरी ब्यराइ २० ॥ पतिव्रता जो स्त्री तिनकी देह रसरूप देहिनमें न गनौ १८ अपराधनये कयो तासों बलिको प्राचीन वैर जानो अर्थ हिरण्यकशिपु के रचक | वैर सों बलिको बांधि पताल पठायो १६ । २०॥ चामरछंद ।। कुभकरण रावणे प्रदक्षिणाहि दै चल्यो। हाइहाइ है रह्यो अकाश पाशुही हल्यो॥ मध्य क्षुद्रघटिका | किरीट सग शोभनो।लभपक्षसों कलिंद्र द्रोचटयोमनो२१ नाराच ॥ उडे दिशादिशा पशि कारिकोरि शासहीं। चपै चपेट पेट बाहु जानु जघसों तहीं । लिये है और ऐचि | ऐंचि वीर वाहुवातहीं। भसेते अतरिक्षऋक्ष लक्षलक्ष जातही २२ कुभकर्ण-भुजगप्रयातचंद ॥ न हो ताडा हो सुवाहै न मानो । न ही शभुकोइड साचो नखानो ॥ न हो। तालमाली सरै जाहि मारो। न हौं दपणे मिधु रापो नि- हारो २३ सुरी आसुरी सुदरी भोगकरें।माहाकालको काल
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