रामचन्द्रिका सटीक । १६५ न देहू । बिनु सुत बधु धरौं नहिं देहू ॥ यहि तन जा तजि लाजहि रेहौं । वन बसि जाइ सबै दुख सैहों ८ मकराक्ष- भुजंगप्रयातछद ॥ कहा कुंभकर्णो कहा इद्रजीते । करै सोइ बोबैकरै युद्धभीतै । सुजौलौं जिनौं हौं सदा दास तेरो। सियाको सकै दै सुनो मन्त्र मेरो ॥ यह जो तुम्हारो भारी लकागढ़ है वाहि कौन गाह है कहे ले सकि है अर्थ लकागढ़ शत्रुके लीवे लायक नहीं है विक्रम कहे यन पल कहे शफि को मोहति है कहे मूञ्छित करति है अर्थ तुम्हारो यन औ बल निष्फल होत है सो याही के दु ख प्रभाव सों ७१८ भीत युद्ध कहि या जनायो कि घाण वेधनादि भय सो अन्तर्धान है युद्ध करिहैं सरस्वती जनाः ॥ वै मापने बल सों सबकों मारि सीताको ले हैं इति व्यग्यार्थः ।। महाराज लका सदा राज कीजै । करौं युद्ध मेरी बिदा बेगि कीजै ॥ हतोंराम स्योबंधु सुग्रीव मारौं। अयोध्याहिले राजधानी सुधारौं १० विभीषण-वसंततिलकाछद ॥ को. दंड हाथ रघुनाथ सॅभारि लीजें । भागे सबै समरयूथप दृष्टि दीजै ॥ बेटा बलिष्ठ खरको मकराक्ष पायो । संहारकाल जनु कालकराल घायो ११ सुग्रीव अंगदबली हनुमत रोक्यो। रोक्यो रह्यो न रघुवीर जहीं विलोक्यो॥ माखो विभीषण गदा उर जोर ठेली। काली समान भुज लक्ष्मण कठ मेली १२ गाढ़े गहे प्रबल अंगनि अग भारे । काटे कटे न बहुभां- तिन काटि हारे॥ब्रह्मा दियो वरहि मन न शस्त्र लागे । लैही चल्यो समर सिंहहि जोर जागै १३ गाढांधकार दिवि भूतल लीलिलीन्हों । प्रस्तास्त मानहुँ शशी कहें राहु कीन्हो ॥ हाहादिशब्द सब लोग जहीं पुकारे। बाढ़े अशेष अंग राक्षसके बिदारे॥ श्रीरामचन्द्र पग लागत चित्त हः । देवाधिदेव मिलि सिद्धन पुष्प वर्षे १४॥
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