रामचन्द्रिका सटीक । १६७ सत्वर कहे शीघ्र बसीठ दूत पूंछौ कि रावण कौन कारज करतहै ताको जवाब रावण के प्रभाव को देखावत चतुरता सो दियो जब रावण देव नौ प्रदेव सबके नाश करिबे के लिये शिव जे महादेव हैं तिनको पूजन करिकै उठे हैं कि ताहीक्षण प्रतिहर मानिकै विधि ब्रह्मा औ शुक्र औ | बृहस्पति ये तीनों आइकै कश्यपके व्याजसो बिनती करिकै देव नौ प्रदेव सब बकसाये कहे मॉगि लीन्हें अर्थ ब्रह्मादिकन भाइ यह कहो कि कश्यप यह बिनती करयोहै किदेवो अदेवनको हमको बकसिदेवअर्थ इनको नाश ना करो इहां प्रदेवपद ते जे देवतन ते अतिरिक्त प्राणी हैं दैत्य मनुष्यादि | ते सबजानौ यासों या जनायो कि जब रावण शिवकी पूजा करत है तब | सहार करिषेकी शक्ति प्राप्ति होतिहै औ देव अदेवनको पकसाइकै कछू नई होमकी रीति सिखायो औं श्रुतिकानमें लागिकै कछू पत्र दीन्हो याके आगे मोहिं या ओर पठायो श्री ब्रह्मादिकनको लैकै प्रभु जे रावण हैं ते मंदिर को गये कहि को हेतु या जामें रामचन्द्र जानैं कि हम प्रतिकोप सो रावण सङ्ग देव प्रदेवको नाश करिवेको चायो तिनको पकसाइप्रमादिकन का हमारिही हानिहेतु होम श्री मंत्र सिखायो हैहै १५ ॥ १६ ॥ १७ ॥ दूत-संदेश ॥ शूर्पणखा जो विरूप करी तुम ताते कियो हमहू दुख भारो । वारिधिबंधन कीन्हों हुतो तुम मोसुत बंधन कीन्हों तिहारो॥होह जो होनीसो होई रहै न मिटै जिय कोटि विचार विचारो । दै भृगुनंदनको परशा रघु- नंदन सीतहि लै पगु धारो १८ दोहा॥ प्रतिउत्तर दूतहि दियो यह कहि श्रीरघुनाथ ॥ कहियो रावण होहि जब मदोदरिके साथ.१९ रावण-सयुताचंद ॥ कहि धौं विलंब कहा भयो। रघुनाथपै जब तू गयो। केहि भांति तू अवलोकियो । कहु तोहिं उत्तर का दियो २०॥ सीताको इरिकै तुमको दुःख दीन्हों अथवा सीताही को भारी दुःख दीन्हों परशुराम तौ धनुष बाण दियो है इहां रावण परशा माग्यो तहाँ या जान्यो कि, रावण सुन्यो है कि रामचन्द्र परशुराम को हथियार छोरि लीन्हों है
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