पृष्ठ:रामचंद्रिका सटीक.djvu/२०३

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AIRO २०१ रामचन्द्रिका सटीक । कौतुक देखिके अगद को एक देवकन्या हॅसतभई सो हासीसा देवकन्या अगदको देखाइ कहे देखिपरी तय ताही को मदोदरी जानि अगद गही तर शकिके ताने लकरानी जो मंदोदरी है ताको वतायो कहूँ तही शकिक पाठ है २६॥ सुभानी गहे केश लकेशरानी । तमश्री मनो सूरशो. भानि सानी ॥ गहे बांह ऐंचें चहूओर ताको । मनोहम लीन्हे मृणालीलताको ३० छुटी कठमाला लरै हार टूटे। खसै फूलफूले लसें केश छूटे ॥ फटी कचुकी किंकिणी चारु छूटी । पुरी कामकीसी मनो रुद्र लूटी ३१ विना कचकी स्वच्छ वक्षोज राजें। किषों सांचहू श्रीफले शोभसाजै ॥ कियों स्वर्णके कुभ लावण्यपूरे । वशीकर्णके चूर्ण सपूर्ण पूरे ३२ मनो इष्टदेवै सदा इष्टहीके । किधौं गुच्छ दै कामस- जीवनीके ॥ किधों चित्तचौगान के मूल सोहैं । हिये हेमके हालगोला विमो. ३३ सुनी लंकरानीनकी दीनबानी । तहीं छोड़ि दीन्हों महामौन मानी ॥ उदयो सोगदाले यदा लंकवासी। गये भागिकै सर्वशाखाविलासी ३४ मदोदरी- दोहा । सीतहि दीन्हों दुख वृथा सांचो देखो आजु ॥ करे जो जैसी त्यों लहै कहा रंक कह राजु ३५ ॥ सूर्य की शोभान सौ सानी मानों तमश्री अधकारकी श्री शोभा है तमश्री सम'धार हैं सूरशोभा सम सिंदूर है इहा सिंदूर नहीं कह्यो सो उपमान ते उपमेय को ग्रहण कियो अथवा सूरशोभा सम अंगद हैं मृणालीलता सम माहु हैं इस सम अगदादि वानर हैं ३० लावण्य सुदरता ३१ सदा दुष्ट जो स्वामी राषण है ताके इष्टदेव हैं अर्थ जैसे सब भाणी इष्टदेव को हृदय मो नमाये रदय है तैसे रापण थे मनमी सग सिन हैं गजपप्प गुच्छ कागजीवनीलता गम पटोरी भी कि चित जे मातिनका जो चौगान खेल है तापाल । जर अथे कारण जो मदारी TI हियो WEBCAM