पृष्ठ:रामचंद्रिका सटीक.djvu/२०४

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००२ रामचन्द्रिका सटीक । कहे वक्षस्थल है तामें साइत हैं कहे सुवर्ण के हालगोला कहे गेंदा है अर्थ जैसे हालगोलानको खेलनहार प्रापनी आपनी ओर बैंचत हैं तैसे देखन- हारन के वित्त इन कुचनको आपनी आपनी ओर बचत हैं मूल कहि या जनायो कि मनुष्य चौगान खेल खेलत है चित्त नहीं खेलत सो याही से चिसन को चौगान खेल नयो उत्पन्न भयो है सो जानो अथवा चित्त जमान । हालगाको विशपण हे चौगान खेल समिद्ध है ३२ मान मनमा बोजन है नाका बोडिदीन्हों मानी कहे गवी यदा पहे जर २३ । ३४ । ३५॥ रावण-विजयबद ॥ को बारा जो मिल्यो है विभी- पपई कुलदपण जीगो कोली । कुभकरण मरयो मघा रिपु तोरी मान डरी यमसौलों ॥ श्रीरघुनाथके गातनि सुदरि गाने न तू कुशली तन तोलौं।शाले सबै दिगपालन के कर रावण के करपाल है जोलो ३६ चामरछद ।। रावणे चले तेते धाम धामते सवै । साजि साजि साज शूर गाजि गाजिकै नरेदीदुदुभी पार भाति भाति वाजहीं। युद्ध- अमिमध्य ५ मतदति राजही ३७ चचरीचद ॥ इद् श्री- रघुनाथको रथहीन भूतल देसिके वेगि सारथिसों कहेउ रथ जाहि लै उपिशेसि ॥ तूण अक्षयवाण सन्छ अभेद लै तनत्राणको पाइयो रणभूमिमें करि अप्रमेय प्रमाणको ३८ कोटिभातिन पौनते मनते महालघुता लसै । वैठिकै भजन श्रीहनुमत अनकन्यों सै॥ रामवन्द्र प्रदक्षिणा करि दक्ष जवहीं बढे । पुष्पवर्षि बजाय दुदुभि देवता बहुधा वटे ३६ ॥ तनु कडे रचाह अशली न नासरती उता हे सुदार श्रीरशुनाध के मातनि गरिफ गर तनमा त कुशला न जाने अथ मोको रामच द्र मार ई ३६ । ३७ तण कहे तस अक्षय कई जाते पण 7 चुकें ३- लघुता शीघ्रता हनुमान ध्वजन में यासों चह कि यह रथ कन्दू रामसन माया न किया होड बढे फले अयं भानदित भये ३० ॥