पृष्ठ:रामचंद्रिका सटीक.djvu/२११

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२०६ रामचन्द्रिका सटीक । ब्रह्मा-दोधकछद ॥ राम रादा तुम अतरयामी । लोकच- तुर्दशके अभिरामी ॥ निर्गुण एक तुम्हे जग जाने । एक सदा गुणवत बखानै १६ ज्योति जगै जगमध्य तिहारी। जाह कही न सुनी न निहारी ॥ कोउ कहै परिणाम न ताको। आदि न अत न रूप न जाको १७ तारकछद ॥ तुमहौ गुणरूप गुणी तुम ठाये । तुम एकते रूप अनेक ब. नाये ॥ यकहे जो रजोगुणरूप तिहारी । त्यहि सृष्टि रची विधिनाम विहारी १८ गुणसत्त्व धरे तुम रक्षत जाको । अब विष्णु कहैं सिगरे जग ताको ॥ तुमही जग रुद्रस्वरूप संहारो । कहिये तिनमध्य तमोगुण भारो १६ ॥ अंबर्यामी कहे सबके अतर में व्याप्त रहत हो अभिरामी कहे रमता अर्थ चौदहोलोकमें रमत हो या जगके एकै प्राणी वेदान्ती तुमको निर्गुण कहे रज सव तमोगुण तीनों करिकै रहित ज्योतिरूप जानत हैं औ एकै सदा रज सव तमोगुण युक्त प्रमादिरूप पखानत हैं १६ यामें निर्गुण रूप फहत हैं कही नहिं जाइ इत्यादिसों या जनायो जहां इदिनको गमन नहीं १७ अब सगुण कहत हैं सस्वादि तीनों गुणरूप तुमहीं हो श्री गुणी प्रमादिरूप तुमही हौ रमोगुणरूप कहे रजोगुणयुशरूप १८ जाका कहे जा सृष्टिको १६ ॥ तुमही जगहो जगहै तुमहीमें । तुमहीं विरची मर्याद दुनीमें ॥ मर्यादहि छोड़त जानत जाको । तवहीं अवतार धरो तुम ताको २० तुमहीं घर कच्छपवेष धरेजू । तुम मीन हे वेदनको उधरेजू ॥ तुमहीं जग यज्ञवराह भयेजू । क्षिति चीनि लई हिरण्याक्ष हयेजू २१ तुमहीं नरसिंहको रूप सें- पाखो । प्रहलादको दीरघदु-ख बिदाखो ॥ तुमहीं बलि बावनवेष छल्योजू । भृगुनदन है तितिक्षत्र दल्योजू २२ तुमहीं यह रावणदुष्ट सहायो । धरणीमहँ बूडत धर्म उबालो ॥