पृष्ठ:रामचंद्रिका सटीक.djvu/२१२

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२१० रामचन्द्रिका सटीक । तुमहीं पुनि कृष्णको रूप धरौगे । हति दुष्टनको भुवभार हरोगे २३ तुम बौद्धस्वरूप दयाहि धरौगे। पुनि कल्कि है म्लेच्छसमूह हरोगे ॥ यहि भांति अनेकस्वरूप तिहारे । अपनी मर्यादके कार्य संवारे २४ महादेव-पकजवाटिका छंद ॥ श्रीरघुवर तुम हो जगनायक देखड्ड दशरथको सुख दायक ॥ सोदर सहित पितापदपावन । बन्दन किय तबहीं मनभावन २५ ॥ विरादरूपसों जग तुमहीं हो ो यह जग तुमहीं में बसत है । यथा कवि प्रियायाम "शेष धरे धरणी धरणी विधि केशव जीवरचे जग ते । चौदाइ लोक समेत तिन्हैं हरिके प्रतिरोमन में चितये ते "ताको कहे ताके वध को २० धर कहे पर्वतमर्थ समुद्रमंथन समय मंदराचलको कच्छपरूप है पृष्ठमें धारण कियो २११२२।२३ अनेक और स्वरूप व्यासादि जानो२४॥२५॥ दशरथ-निशिपालिकाछंद ॥ राम सुत धर्मयुत सीय मन मानिये । बधुजन मातुगण प्राणसम जानिये । ईश सुरईश जगदीश सम देखिये। रामकहें लक्ष्मण विशेष प्रभु लेखिये २६ रामचन्द्र-चचलाछद ॥ जूझि जूझिकै गये जे वानरालि ऋक्षराजि । कुभकरण लोकहरण भक्षियो जे गाजि गाजि ॥ रूप रेखस्यो विशेषि जीउ करो सोपाज। प्रानि पांडलागियो तिन्है समेत देवराज २७ दोहा॥ वानर राक्षस ऋभ स्व मित्र क्लज ममेत ॥ पुष्पकरढि रघुनाथजू बले सपिके रेत २८॥ के राग, सुन ' सीतारो धम गुन माम मानो सीता निदाप है जो | सदर करा कि हम ग्रहण पर मार पशुआदि गृहजन कैसे करिहैं -योगा। नाम नाना 173 मारना।।।।म।। नाम नाम या प्रकार TT. Vul - 'रामान्द्र 3 ग्रहण नगर -