पृष्ठ:रामचंद्रिका सटीक.djvu/२१६

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Oy LET NW NA NI २१४ रामचन्द्रिका सटी। नही है और सबै गमानुरागी है पर रागा जो स्त्री हैं तारे अरागा नहीं है रामत्र दो मारागी ई ३८ ॥ जहां पारिदै वृद नाजागि साज। म जहालयकारी विराज । भरद्वाज गठे तथापि मोह। मनो एमही वक लोकेश सोहै ४० लक्ष्मण-दटम ॥ गोदास मृगबरू चूसे बाधिनीन चाटत सुरभि नागरालकवदन है। मिहन की मटा ऐंचे कलभरनिकरि मिहनको आसन गयद को रदनहै । फणी के फणनपर नारन मुदित मोर कोध न वि- रोध जहां मदनमदन है । वानर फिरत डोरेडोरे अधताप. सनि शिको समाज कैधौ ऋषि को सदन है ४१ ॥ नदाता आश्रममा रिमाके बीचों बैठे अनेक इतिहासादि कहि विमन के मन को मोहत हैं इत्यय लारेश ब्रह्मा ४० मगनपत्ररू मृगणक सग ग्रीया के पार हारेटोरे हे टोला हाल अधनापस रहे बडेनपरजी यासा वानरन को ऋषिन क बाड़ा सा भातनिर्भग्ना जनाया अधा अध करे धर जो तापम को नपस्सी नशे और कई बाम गह अर्थ जहा जाइनी इहा करत है तहा पानर गाड आया है और शिव समाज म मृगजरहरू पन्ने चन्द्रमा के रथ हरिण जानो अथवा और अनेक गणन के मृगगाहन है। यथा तुलसीपनगमायण' नावाहन नानाखा। हरपे शिव समान निनदेसा" आ मुरभि पदने महादेवको गहन वृषभ जानी औ पापबालक पनन कारगण को गाल्न बार मानी श्री सिंहपद ते देवी का वाहन सिंह नानी अथवा इनों पन्ते सिंहही जानी औ गयद | पन्ते गणेश जानौ नौ फर्णी मातेर धारण करे मो. सामिकाशित | को वाहन है औ अश्रतापस कहे तागसम्पपारी जे आधरे गण है । यथा तुलसीकृतरामायणे " पियुश नयन काउ नयन पिटाना " ो वानर पद ते वानर मुख गण जानो । यया तुजसीतिगमायणे खर शान सुपर -TITण प्राणागो जैसरिसे रामाज में नाभाविक राधा जाब विद्ध रहन तस आश्रमहू में रहा ते भावार्य ४१॥ भुजगप्रयातछद । जहाकोमलै वल्कलै वस्त्र सोहैं। जिन्हें