रामचन्द्रिका सटीक । २१७ सामके शुभ स्वच्छअक्षर है सपक्ष विराजहीं ४७ तनु कधुकठ त्रिरेख राजति रज्जुसी अनुमानिये । अविनीत इद्रिय- निग्रही तिनके निबधन जानिये। उपवीत उज्ज्वल शोभिजै उर देखि यों बरणे सबै । सुर पापगा तपसिंधुभे जस श्वेतश्री दरशे अब ४८॥ सामवेद काम जो कंदर्प है ताके ने कर्म हैं परस्त्रीगमनादि तिनतेज | कहे उत्पन्न ज वस्तु हैं अध पातक ते अशेष कहे सपूर्ण बिलात है अथवा काम जो हैं शुभ अशुभ अभिलाष तिनके जे कर्म हैं तिनते ज कहे उत्पन्न | वस्तु हैं अर्थ स्वर्ग नरक भोग शुभ अभिलाष के कर्मन सो स्वर्गभोग उत्पन्न होत है अशुभ अभिलाप के कर्मन सौ नरकभोग उत्पन्न होत है ते दुवौ बिलात है अर्थ जिनको देखि माणी स्वर्गनरकभोगसों भिन्न होत हैं अत में मुक्ति पावत हैं प्रथम कह्यो है कि स्वर्गनरकहता नाम श्रीराम कैसो । नौ सोमके मत्रके पुरश्चरण सों काके कर्मज बिलात हैं इनके देखतही तासों अद्भुत करयो पास सुगध ४७ कंबुसहश कमें तनु सूक्ष्म त्रिरेखा राजति है ताडि रज्जु कहे जेवरी सम अनुमानियत है सो जेवरी काईके लिये है अविनीत कहे अशिक्षित अर्थ आज्ञा दारि अभिलपित बातकर्ता जे इंद्रिय | नेत्रादि हैं तिनके निग्रही कहे ताडनकर्ता अर्थ दुःखद निधन कहे बंधन है तपसिंधु भरद्वाज हैं सुरमापगा गंगाके तीनों सोत सम उपवीन के तीनों सूत्र हैं सिंधु में मिलियो नदी को धर्म है ४८ ॥ दोहा । फटिकमाल शुभ शोभिजे उर ऋषिराज उदार॥ अमल सकल श्रुतिबरणमय मनो गिराको हार ४६ सुदरी छंद ॥ यद्यपि है रसरूपरस्यो तनु । दंडहि सों अविल बित है मनु ॥ धूमशिखानके व्याज मनो गुनि । देवपुरी कहँ पंथ रच्यो मुनि ५० रूप धरे बड़वानलको जनु । पोषत हैं पय- पानहिं सो तनु ॥ क्रोध भुजंगम मंत्र बखानहुँ ।मोहमहातम के रवि मानहुँ ५१ ॥ श्रुतिवर्ण वेदाक्षर सम फटिक'गुरिया हैं औं भरद्वाज की वाणी सरस्वती
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