पृष्ठ:रामचंद्रिका सटीक.djvu/२२०

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

MAL. 20 EN LA " गमचन्द्रिका सगा। द्वारा सग ई पा सरस्वती में गुष्कि मानो बनाक्षरनहा की माता पहिरे ! ४ ४६ युद्धनासों चलिरखिये दहालये हैं ना तक परत है कि ऋषि का नब स र पाते रूप रस गन्ध शब्द स्पर्श पाचौ इदिनके पानी विषा जानो तिन करिके करे तिन्की वासना करिफ ररयो कहे व्यंगयो हे रहित भयो है इनि अर्थ वृद्धतासों नेत्रादि इदिनसा स्पादि विषयकी पासना परि गई है तार पर मानो दह सौ अवलरित कहे युक्त पर श्लेष दर पे निग्रह भी लकुट श्री अग्निहोत्राग्नि को आहुति सों रित्यही प्रचलित कियो करत है तामें तर्क है कि धूमशिखा जो अग्नि है ना प्याज मानो देवपुरी की पध राह माई ५० पयर र जल पय क्षीरे च नीरे च इति हैम' ५९ ॥ सत्यसराा असखा कलिके जनु ।पर्वत औषधि सिद्धिन के मनु ॥ पापकलापनके दिनदपण । देखि प्रणाम कियो जगभूपण ५२ पद्धटिकाछन् । सीतासमेत शेपावतार। दट- प्रत किये ऋषिके अपार ॥ नरवेप विभीषण जामवत । सु- ग्रीव वालिसुत हनुमत ५३ ऋपिराज करी पूजा पार । पुनि कुशल प्रश्न पूछी उदार ॥ शत्रुघ्न भरत कुशलीनिकेत। सब मित्र मनि मातन समेन ५४ भरद्वाज || कह कुशल कहाँ तुम आदिदेव । सर जानतही ससारभेव ॥ विधि विष्णु शसु रविशशि उदार। सब पावकादि अशावतार ५५ ब्रह्मादि सकल परमाणुयत । तुमहीं हो रघुपति अति अनत ॥ अव सकल दानदै पूजि पिप । पुनि कहहु विजय वैकुठ क्षित्र ५६॥ इति श्रीमत्सकललोकलोचनचकोरचिन्तामणिश्रीरामचन्द्र- चन्द्रिकायामिन्द्रजिविरचिताया रामस्य भरद्वाजा- श्रमगमननाम विश प्रकाश ॥ २० ॥ सत्य कहे सत्ययुग ओपधि सम ने प्रागै सिद्धि है तिनके पर्वत हैं जैसे