२२४ रामचन्द्रिका सटीक। है अर्थ चौदही लोक में विदित है २७ बीसवें प्रकाश में भरद्वाज कह्यो है कि अब करहु विजय वैकुंठ विभ या प्रकार निमंत्रण दियो है तासों रामचन्द्र हनुमान सों कहत हैं कि आज ऋषि को निमत्रण है तासों ऋपि के इहां भोजन करि मात भरत पास नदिग्राम में आइ हैं २८ ॥ २६ ॥ हनूमान् ॥ सब शोकनि छांडो भूषणमाड़ो कीजै विविध बधाये । सुरकाज सँवारे रावण मारे रघुनदन घर आये ॥ सुग्रीव सुयोधन सहित विभीषण सुनहु भरत शुभगीता । जय कीरति ज्यों सँग अमल सकलौंग सोहत लक्ष्मण सीता ३० पद्धटिकाबद । सुनि परम भावती भरत बात । भये सुखसमुद्र में मगन गात ॥ यह सत्यः किधों कछु स्वम ईश। अब कहा कह्यो मोसन कपीश ३१ जैसे चोर लीले अंगार।त्यहि भूलिजाति सिगरी सॅभार॥जीउठत उवतज्यों उदधिनन्द । त्यों भरत भये सुनि रामचन्द ३२ ज्यों सोड रहत सब सूरहीन । अति है अचेत यद्यपि प्रवीन ॥ ज्यों उपत उठत हँसि करत भोग । त्यों रामचन्द्र सुनि अपघलोग ३३ मालिनीबद | जहें तहँ गज गाजै दुदुभी दीह वाजै । वहुष- रणपताका स्यदनाशादि राजें ॥ भरत सफल सेनामन्य यो वेष कीने । सुरपति जनु आये मेघमालानि लीने ३४ सकलनगरवासी भिन्नसेनानि साजै । रथ सुगज पताका झुडमुडानि राजै ॥ थलथल सब शोभै शुभ्रशोभानि छाई। रघुपति सुनि मानो औषसी आज आई ३५ चामरबद ॥ यत्र तत्र दास ईश व्योमते विलोकहीं। वानरालि रीछराजि दृष्टि सृष्टि रोकहीं ॥ ज्यों चकोर मेघोघमध्य चद्रलेखहीं। भानुके समान यान त्यों विमान देसही ३६ मदनमनोहर दडक || आवत विलोकि रघुबीर लघुवीर तजि व्योमगति
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