२२५ रामचन्द्रिका सटीक । तलभू विमान तब पाइयो । रामपदपद्म सुखसम कहें बधु- युग दौरि तब पदपदसमान सुख पाइयो । चूमि मुख भूधि शिर अंक रघुनाथ धरि अश्रुजल लोचनन पेराि उर ला इयो । देव मुनि वृद्ध परसिद्ध सब सिद्धजन हर्षि तन पुष्पवरषानि बरपाइयो ३७॥ माडौ कहे पहिरौ ३० । ३१ उदधिनद पन्द्रमा ३२ । ३३ स्यदन रथ अश्व घोड़े आदि पदते पालकी आदि और जानो ३४ थल थल में सफल नगरवासी फैसे शोभित हैं कि अनेक प्रकार के भूषण वस्त्रादि की शामा नसों छायो रघुपति को प्रागमन इति शेष सुनिकै मानो अवधपुरीही सी आई है ३५ वानरन की प्रालि कहे पति श्री ऋक्षन की राजि पक्ति है सो पुरवासिन की ष्टि की जो सृष्टि है ताको रोंकति है अर्थ आगे वानर ऋक्ष उड़त भाषत हैं तासों रामच द्र नहीं देखि परत भानु कहे सूर्यरूपी जो यान कहे बहि वाहन हैं तामें चढ़यो चन्द्रमा को जैसे मेघोष कई मेघ समूह में चकोर लेखें ताही विधि भानु सूर्य सम यान पुष्पक में रामचन्द्रको क्ष वानरनके मध्य में पुरवासी देखत हैं या अभूतापेक्षा है दूसरो अर्थ सुगम है ३६ अंक कहे गोद में धरिलियो कहे बैगरि सियो फेरि | खोचनन में अनु देखि अतिमीतिसों उर में लाय लियो ३७ ।। दोहा । भरतचरण लक्ष्मण परे लक्ष्मणके शत्रुघ्न । सीता पगलागत दियो पाशिष शुभ शत्रुघ्न ३८ मिले भरत अरु शत्रुहन सुग्रीवहि अकुलाइ । बहुरि विभीषणको मिले अगद | को सुख पाइ ३६ आभीरछद ।। जामवंत नल नील । मिले भरत शुभशील ।। गवय गवाक्ष गयंद । कपिकुल सब सुख कंद १० ऋषिवशिष्ठको देखि जन्म सफल करि लेखि ॥ राम परे उठि पाय । लक्ष्मणसहित सुभाय ४१ दोहा॥ ले सुग्रीव विभीषणहिं करि करि विनय भनंत, पायन परे वशिष्ठक कविकुलबुधिषलवत ४२ श्रीराम-पद्धटिसाद ॥ सुनिये। LAW OUTLO URY
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