२२७ रामचन्द्रिका सटीक। हर्षी ४८ दोहा॥ माखो में अपराध बिन इनको पितु गुण- ग्राम ॥ मनसा वाचा कर्मणा कीन्हे मेरे काम ४६ गीतिका छंद ॥ इन जामवत अनेक राक्षस लक्षलक्षनही हने । मृग- राज ज्यों वनराजमें गजराज मारतनीगने ॥ बलभावना बलवान कोटिकरावणादिक हारहीं।चदिव्योमदीह विमान देव दिवान आनि निहारही ५० दोहा॥ करैन करिहै करत अब कोऊ ऐसो कर्म । जैसे बांध्यो जलउपल जलनिधिसेतु सधर्म ५१ गीतिकाछंद । हनुमत ये जिन मित्रतारविपुत्रसों हमसों करी । जलजाल कालकराल माल उफाल पारध- राघरी॥ निश्शंक लक निहारि रावणधाम धामनि पाइयो। यक वाटिकातरमूल सीतहि देखिकै दुख पाइयो ५२ ॥ गूढस्थली जयस्थान तिनके अंगदके सनसों कर्षी कहे बँची कठोरी इति श्री प्रकपन को मारिकै इनकी मति हर्षी प्रसन्न भई ४८१ ४६ लक्ष लक्षनही अर्थ एक एक बार में लाख लाख मारयो है पनराज कहे पड़ो धन बलभावना कहे पलक्रिया हारही कहे हारत भये यहां भूतार्थ मों वर्त मान प्रत्ययको अर्थ है ५० उपल पापाण सधर्म कहे यथोचित ५१ फाल हुते कराल जे नक्रादि जतु हैं तिनको है माल कहे समूह जामें ऐसो जो जलजाल कहे समुद्र को जल समूह है ताके पारकी धरा पृथ्वी को उफाल कहे कूदियो ताही सो धरी कहे प्राप्त भये अर्थ एतो बडो समुद्र ताके पार | कूदिही कै गयों काहू पोतादिमें नहीं गये इति भावार्थः ५२ ॥ तरु तोरिडारि प्रहारि किकर मंत्रि पुत्र सहारियो । रण मारि अक्षकुमार रावण गर्वसों पुर जारियो॥ पुनि सौंपि सीतहि मुद्रिका मणि शीशकी जब पाइयो । बलवंत नांघि अनंतसागर तैसही फिरि पाइयो ५३ दशकठ देखि विभी. पणैरण ब्रह्मशक्ति चलाइयो । करि पीठि त्यों शरणागते तब आय वक्षसि लाइयो | यकयाम यामिनिमें गयो
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