पृष्ठ:रामचंद्रिका सटीक.djvu/२३४

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रामचन्द्रिका सटीक। २३३ जाह विभीषन को ॥ नैऋत्यनको कपि लोगनको । राखौ निजधामनि भोगनको२४दोहा॥ एक एकनैऋत्यको जितने वानर लोग॥ आगेही ठाढे रहत अमित इद्रके भोग २५ ॥ इति श्रीमत्सकललोकलोचनचकोरचिन्तामणिश्रीरामचन्द्र- चन्द्रिकायामिन्द्रजिविरचितायांरामस्यायोध्यापुर- प्रवेशोनाम द्वाविंश. प्रकाश ॥२२॥ संपत्ति भनेक भोग वस्तु २३ । २४ अमित कहे भप्रमाण २५ ॥ इति श्रीमजगजननिजनकजानकीजानकीजानिप्रसादाय जमजानकीप्रसाद निर्मितायो रामभक्तिप्रकाशिकायो द्वाविंशः प्रकाश ॥ १२॥ दोहा॥ या तेइसे प्रकाशमें ऋषिजन आगम लेखि ॥ राज्यश्री निंदा कही श्रीमुख राम विशेखि १ मल्लिकाछंद ।। एककाल रामदेव । शोधु बंधु करत सेव ॥ शोभिजे सबै सो और मंत्रि मित्र ठौर ठौर २ वानरेश यूथनाथ । लंकनाथ बंधुसाथ ॥शोभिऊँ सबै समीप देशदेशके महीप ३ दोहा॥ सरस स्वरूप विलोकिकै उपजी मदनहिं लाज॥ भाइ गये ताही समय केशव ऋषि ऋषिराज ४ असित अत्रि भृशु अगिरा कश्यप केशव व्यास ।। विश्वामित्र अगस्त्ययुत बालमीकि दुर्वास ५॥ ११२वानरेश सुग्रीव यूथनाथ अंगदादि लंकनाथ के जे बन्धु विभीषण अथवा बन्धु जे शातिवर्ग हैं राक्षसगण इति ते हैं साथ जिनके ऐसे लेकनाय जे विभीषण हैं ते ३ सरस कडे अपना सो अधिक सुदर ४ ॥ ५ ॥ वामदेव मुनि कण्वयुत भरद्वाज मतिनिष्ठ ॥ पर्वतादि दै सकल मुनि प्राये सहित वशिष्ठ ६ नगस्वरूपिणीचंद ॥ सबंधु रामचन्द्रजू उठे बिलोकिकै तपै। सभा समेति पापरे विशेषि पूजियो सबै ॥ विकसी भनेरुधा दशा अनूप OLMALIWALALULUW