२३२ रामचन्द्रिका सटीक। १६ रामचन्द्र भागनों आये तामों मात जीवनसम पाये सोनाम | भरे कहे अनिप्रेमी लातीमें लगाये फेरि अक ना गोद है तामे धरे कई वैगरे तप दाश्रामों सी राम लक्ष्मण को गन्हाय ओ ने सबै कौशल्यानि माता रामावि बदन निहारती है भो निनपर सरस पारि पारि सो अथ गमनगिनको दती है भो तिन याचकासों पाशी | वोद करि घनो लेती हैं पावनी है अथ याचक आशीवाद दते हैं कि जो | हमको तुम दियो ताको गोरिगुणिन तुम्हारे हो अथवा रामादिके वदा दर्शनही सो धो लेती है पाती हैं अर्थ मुसदर्शन गरि घनो पायो सप मानती हैं १७ । १८ राउर खीभवन १० ॥ श्रीराम- दोहा । इन सुग्रीव विभीषणे अगद अरु हनु- मान ॥ मदा भरत शत्रुघ्नसम माताजी में जान २० सुमित्रा- सोरठा ॥ प्राणनाथ रघुनाथ जिय की जीवनमूरि हो । लक्ष्मण हे तुम साथ शमियहु चूक परी जो कछु २१ राम-दडक ॥ पौरिया नहीं कि प्रतीहार कहाँ किधों प्रभु पुत्र कहाँ मित्र किधों मत्री सुखदानिये। सुभट कहाँ कि शिष्य दाम कहो किधौं दूत केशोदास हाथको हत्यार उर बानिये ।। नैन वहाँ विधौ तन मन किधों तनत्राण बुद्धि कहो किधों वल- विक्म बसानिये । देखिये को एक हैं अनेक भांति कीन्हीं सेवा लक्ष्मणके मात कौन कौन गुण गानिये २२ ॥ २० १२१ पौरिया जो मुख्य द्वार की रक्षा रहत है प्रतीहार जो राज सभा के द्वार में सुवर्णादि यो दह खै ठाडो रहन है बल जोर विक्रम यन | ये सर एक एक आपनो आफ्नो कार्य करि मुस देन है सो लक्ष्मण ने जहा जाको काज लाग्यो है नहाँ तादी विधि तीन काज करि हमको परमसुख दीन्हो है ॥ मोटनकछद॥ शत्रुघ्न पिलोक्त राम हैं। डेरानिसजी जह सुक्स लहैं। मेरे घर सम्पति युक्त सवै । सुग्रीवहि निवास अ २३ साजे जो भरत्थ सबै धनको । राखो तह
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