पृष्ठ:रामचंद्रिका सटीक.djvu/२५

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

२२ रामचन्द्रिका सटीक । जो वस्तु आप लहिये लीजिये सोधन्य है १५ राम परशुराम १६ । १७ हाथी घोड़ा रथ पियादा चारों सेनाके अङ्ग हैं १८ हरिणी के साहचर्यते रिपु पदते हरिणीरिपु कहे सिंह जानौ जिन हाथन सिंह हरिणी मारत हैं तिन सों कहा गजनको नहीं मारत अर्थ गजहू मारत हैं औ कुँवरन में मणिश्रेष्ठ | ऐसे नृपकुँवर जिन बाणनि सुख कहे सहजही लक्ष कहे लाखन लक्ष नि- शाना बेधत हैं तिन सों वाराह बाघ सिंहनहूको नहीं मारत अर्थ मारत हैं हे नृपनाथ ! यह कथा अकथ कहे अतर्क मानौ निश्चय इति अथवा श्र- कथ कहे अद्भुत जो यह कथा है ताको मानिये कहे निश्चय मानौ आशय यह रामचन्द्र राक्षसन को वध करिहैं यामें सन्देह ना करौ १६ ॥ सुन्दरीछंद ॥ राजनमें तुम राज बड़े अति ।मैं मुखमांगों सो देहु महामति ॥ देवसहायकहीं नृपनायक । है यह का- रज रामहि लायक २० राजा-में जो कह्यो ऋषि देन सो लीजिय । काज करोहठ भूलि न कीजिय॥प्राण दिये धन आहिं दिये सब । केशव राम न जाहिं दिये अब २१ ऋषि- राज तज्यो धन धाम तज्यो सब । नारि तजी सुत शोच तज्यो तब ॥ापनपौ जो तज्यो जगवन्द है । सत्य न एक तज्यो हरिवन्द है २२ ॥ एक समय इंद्र नारदसों हरिश्चन्द्र के सप्त प्रतापादिको माहात्म्य सुनि इंद्रासन लेबेको भयमानि दुःखित भये हैं तब ब्रह्मादि देवन इंद्रको धैर्य दैकै हरिश्चन्द्र का सत्य भंग करिबे के लिये नारदको विश्वामित्रके पास पठयो विश्वामित्र नारदमुखसों देवनकी आज्ञा सुनि काहू कामरूपी राक्षसको बोलाइ कह्यो कि तू शूकररूप है अयोध्यामें जाइ राजा हरिश्चन्द्रको मृगया. मिस हमारे आश्रम में ल्याउ राक्षस सो कियो विश्वामित्रके आश्रम में राजा को ल्याइ लुप्त भयो आश्चर्ययुक्त है राजा आश्रम नदी में नहाइ कपटद्विज- रूप धरि विश्वामित्रको सब पृथ्वी औ सर्वस्वदान करयो है फेरि विश्वामित्र कह्यो है कि शतभार. सुवर्ण दक्षिणा देहि तौ सर्वस्व लेहैं नाही तो सत्यको छोड़ो तब काशीमें जाइकै मदनानाम स्त्री औ रोहिताश्व नाम पुत्र को देवशर्मा ब्राह्मण के हाथ साठिभार सुवर्ण को बेच्यो है और चालीसभार