पृष्ठ:रामचंद्रिका सटीक.djvu/२५४

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GROCER रामचन्द्रिका सटीक । २५३ मत । जानत हो तो कहौ तनु है रत ॥यों कहि मौन गही जगनायक । केशवदास मनो वच कायक २६ चामर छंद ॥ साधु साधुकै सभा अशेष हर्ष हर्षियो। दीह देवलो- कते प्रसूनवृष्टि वर्षियो ॥ देखि देखि राजलोक मोहियो महाप्रभा। आइयो तहां तुरंत देवकी सबै सभा ३०॥ राज्यादि जे आपद् विपत्ति औ संपद् संपत्तिके मग यह हैं तिनमें हौं न चलिहौं हे मुनि! एक देहत्याग विना और कछू अभिलाष नहीं करतो अर्थ केवल देहत्याग करिबेही की इच्छा है २८ रत कहे अनुरक्त २६ देवकी सबै सभा आइयो कहे आवत भई सो राजलोक कहे राजभवनकी प्रभा देखि मोहियो कहे मोहित भई ३०॥ विश्वामित्र ॥ व्यासपुत्रके समान शुद्धबुद्धि जानिये । ईशको अशेष तत्व तत्त्वसो वखानिये । इष्ट हो वशिष्ट शिष्ट नित्य वस्तु शोधिये । देवदेव रामदेवको प्रबोध बोधिये ३१ ॥ इति श्रीमत्सकललोकलोचनचकोरचिन्तामणिश्रीरामचन्द्र- चन्द्रिकायामिन्द्रजिदिरचितायां जगन्निन्दावर्ण- नन्नाम चतुर्विंशतितमः प्रकाशः॥२४॥ विश्वामित्र वशिष्ठ सों कहत हैं कि हम तुमको व्यासपुत्र ने शुक्राचार्य हैं तिनके समान शुद्धबुद्धि कहे ज्ञानयुक्त है वुद्धि जिनकी ऐसे जानियत है अर्थ अतिज्ञानी हौ औ ईश जे ईश्वर हैं तिनको जो अशेष कहे संपूर्ण तत्त्व कहे स्वरूप है ताको तत्व कहे सिद्धान्त सो अर्थ निश्चयात्मक बखानि एक हेतु कहत हौं 'तत्त्वस्वरूपे परमात्मनीति मेदिनी" हे शिष्ट कहे श्रेष्ठ वशिष्ठ तुम इष्ट कहे रघुवंश के गुरु हौ औ नित्य जो वस्तु है ताको शोधिये कहे दूंदो करत हो सो सब विधिसों तुमको उचित है तासों देवके देव जे रामदेव हैं तिनको प्रबोध जो ज्ञान है तासों बोधिये कहे बोध करौ अर्थ जीवोद्धारको | मत रामचन्द्र पूंछत हैं सो कहौ ३१॥ इति श्रीमजगजननिजनकजानकीजानकीजानिप्रसादाय जनजानकीप्रसाद निर्मितायांरामभक्तिप्रकाशिकायां चतुर्विशतितमः प्रकाशः ॥२४॥