पृष्ठ:रामचंद्रिका सटीक.djvu/२५५

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२५४ रामचन्द्रिका सटीक । दोहा ॥ कथा पचीस प्रकाश में ऋषिवशिष्ठ सुख पाइ॥ जीवउधारण रीति सब रामहिं कह्यो सुनाइ १ वशिष्ठ- पद्धटिका छंद ॥ तुम आदि मध्य अवसान एक । अरु जीव जन्म समुझो अनेक ॥ तुमहीं जो रची रचना विचारि। त्यहि कान भांति समुझौं मुरारि २ सव जाति बूझियत मोहिं राम । सुनिये जो कहौं जग ब्रह्मनाम ॥ तिनके अशेष प्रतिबिंब- जाल । त्यइजीव जानि जगमें कृपाल ३ निशिपालिकाछंद। लोभ मद मोह वश काम जवहीं भये । भूलि गये रूप निज बेधि तिनसों गये ॥ राम ॥ बूझियत बात यह कौन विधि उद्धरै । वशिष्ठ॥वेदविधि शोधि बुध यत्न बहुधा करै ४ राम- दोहा॥ जित लैजे वासना तित तित है लीन ॥ यत्न कहो कैसे करै जीव वापुरो दीन ५ वशिष्ठ-दोधकछंद ॥ जीवनकी युग भांति दुराशा।होति शुभाशुभ रूप प्रकाशा॥ यत्ननसों शुभपंथ लगावै । तो अपनौ तबहीं पद पावै ६॥ १ जीवन के जे अनेक जन्म हैं तिनको समुझौं कहे जानत हौं अथवा अनेक जे जीव हैं तिनके जन्मको अर्थ जा प्रकार सों जीवन की उत्पत्ति है ताको समुझौ कहे मोसों बूझत हौ २ सब वस्तु जानिहू के जो हमसों बूझि- यत कहे पूंछत हौ तौ सुनौ हम कहियत है जगमें जो ब्रह्मनाम कह्यो है अर्थ जिनको ब्रह्मनाम है तिनके जे प्रतिबिंव जो प्रतिबिंबसमूह हैं तेई जीव हैं | यह मत प्रतिबिंबवादिन को वेदांतमें प्रसिद्ध है ३ अपनो जो रूप ब्रह्म है ताको भूलि गये तिनसों लाभादिसों ४ वासना दुराशा ५ शुभ दुराशा जो ईश्वरपूजनादिकी आशा है ताके पंथ में जीवको अथवा मनको लगावै तो अपनो जो पद स्थान है ब्रह्मस्थान ताको पावै अर्थ वासनाको ग्रहण करै ताके बादि ताहू वासना को त्याग करि ब्रह्मपद को प्राप्त होय ६ ॥ हौं मनते निधिपुत्र उपायो । जविउधारण मंत्र बतायो॥ है परिपूरण ज्योति तिहारी। जाइ कही न सुनी न निहारी शुभ