रामचन्द्रिका सटीक । २६१ रस कहे स्वादरहित सरस स्वादयुक्त वस्तु जाको समान होइँ औ भोग जाको अभिलाप विना होइ सो महाभोक्ता है ३६ । ३७ जाके जियमें ज्ञान को बहुत प्रकार को व्यवहार है औ योग औ भोग को बहु विचार है ऐसो जब होइ तब तुम्हारो जो धाम तेज है ज्योतिरूप ताको मिलि है अथवा धाम कहे पर वैकुंठ ताको मिलि है प्राप्त हैहै ३८ वस्तुविचार कहे ब्रह्म- विचार अथवा सत् असद्वस्तु को विचार निग्रह ताड़न परिग्रह कहे परिजन निकटवासी इति "परिग्रहः परिजने इति मेदनी" ३६ ॥ दोहा । लेइ जो कहिये साधु अनलीन्हें कहिये वाम ॥ सवको साधन एक जग राम तिहारो नाम ४० राम ।। मोहिं न हुतो जनाइबो सबही जान्योाजु ॥ अब जो कहो सो करे बनै कहे तुम्हारे काजु ४१॥ इति श्रीमत्सकललोकलोचनचकोरचिन्तामणिश्रीरामचन्द्र- चन्द्रिकायामिन्द्रजिद्विरचितायांजीवोद्धार-. वर्णनन्नाम पञ्चविंशःप्रकाशः ॥२५॥ वाम कहे कुटिल साधन कहे उपाय अर्थ मुक्तिको उपाय केवल तुम्हारे नाम को जप है ४० जो अपनो ईश्वरत्व मोहिं काहूको जनाइबोई नहीं रह्यो सो सबही जान्यो तासों जो कहौ सो अब करिये अर्थ राज्य लीवे को कहत हौ सो लेहैं ४१ ॥ इति श्रीमज्जगजननिजनकजानकीजानकीजानिप्रसादाय जनजानकीप्रसाद- निर्मितायां रामभक्तिप्रकाशिकायां पञ्चविंशःप्रकाशः ॥२५॥ दोहा । कथा छबीस प्रकाशमें कह्यो वशिष्ठ विवेक । राम नामको तत्त्व अरु रघुवर को अभिषेक १ मोटनक छंद ॥ बोले ऋषिराज भरत्थ तबै । कीजै अभिषेक प्रयोग सबै ॥ शत्रुघ्न कह्यो चुप है न रहौ । श्रीरामके नामको तत्त्व गहौ २॥ १ जब रामचन्द्र राज्य अंगीकार कस्यो तब ऋषिराज वशिष्ठ सों भरत
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