पृष्ठ:रामचंद्रिका सटीक.djvu/२७३

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

रामचन्द्रिका सटीक । २७५ निर्वेदादिते इति सव्यभिचारी भावरस ग्रन्थनमें प्रसिद्ध हे नारी नाटिका दंड ब्रह्मलकुट औ डांडु.अर्थ और कोऊ काहूसों डांड नहीं लेत मीचुसों वियोग कहि जनायो कि सबकी मुक्ति होति है वासनाई बंध्या है अर्थ वासनाको जो शुभाशुभ फल स्वर्ग नरकादि भोग है सो काहू प्राणीको नहीं होत सब प्राणी मुक्त होत हैं १२ । १३ पाप कहे कष्ट पट्टन शहर पाप नाम कष्टको विहारीकी शतसैयामों है " सीरे यत्ननि शिशिर निशि सहि विरहिनि तनताप । वसिबेकी ग्रीपमदिननि परयो परोसिनि पाप नामसों एक संसारही को सब जीतत है अर्थ संसारबंधन सों छूटि जात है भौर कोऊ काहूको हरावत नहीं १४ ॥ चंद्रकलाचंद ॥ सबके कल्पद्रुमके वन हैं सबके वर वारन गाजत हैं। सबके घर शोभित देवसभा सबके जयदुंदुभि |वाजत हैं। निधि सिद्धि विशेष अशेषनिसों सब लोग सबै सुख साजत हैं । कहि केशव श्रीरघुराजके राज सबै सुर- राजसे राजत हैं १५ दंडक ॥ जूझहिमें कलह कलहप्रिय नारदै कुरूप है कुबेरै लोभ सबके चयनको । पापनकी हानि डर गुरुनको वैरी काम पागि सर्वभक्षी दुखदायक अयन को ॥ विद्याहीमें वादु बहु नायक है वारिनिधि जारज है | हनुमंत मीत उदयनको । आखिन अछत अंध नारिकेर कृश कटि ऐसो राज राजै राम राजिवनयनको १६ ॥ कल्पद्रुम के अर्थ कल्पद्रुम सरिस द्रुमक्षनके वन हैं देवसभा सम सभा महापनादि जे नवौ निधि हैं औ अणिमादि जे अष्टसिद्धि हे तिन अशेषन पूर्वन सहित विशेषपूर्वक सब लोग और ने सबै सुख हैं तिन् साजत हैं अर्थ करत हैं १५ पार्वती के शापसों कुबेर कुरूप भये हैं सो कथा बाल्मी. कीय रामायण उत्सरकांड मों प्रसिद्ध है चयन कहे आनंदअयन कहे घर को दुःखदायक अर्थ दाहक औ सर्वभक्षी श्रागिही है बहुनायक बहुत स्त्रीनको अर्थ नदिनको नायक स्वामी और सब एकपनी भोगी हैं इति भावार्थः सत्र के उदयन प्रकाशन को मीत कहे हित है अर्थ सबके शुभाकांक्षी हैं नारिकेर कहे. नारिकेरके फल औ कटिही कश दुर्वल है १६ ॥