२८० रामचन्द्रिका सटीक । गंधयुक्त समान उच्च नीच रहित दुहुँ दिशि कहे गैल के याहू ओर वाह ओर सनेह प्रेम औ तैल १६ भाइ कहे चेष्टा २० ॥ शुक-हरिप्रियाछंद ॥ पौढ़िये कृपानिधान देवदेव राम- चन्द्र चन्द्रिकासमेति चन्द्र चित्त रैनि मोहै । मनहुँ सुमन सुमतिसंग रचे रुचिर सुकृत रंग अानंदमय अंग अंग सकल सुखनि सोहै ॥ ललित लतनके विलास भ्रमरवृंद उदास अमलकमलकोश आसपास वास कीन्हे । तजि तजि माया दुरंत भक्त रावरे अनंत तव पद कर नैन बैन मानहुँ मन दीन्हे २१ घर घर संगीत गीत बाजे बाजें अजीत कामभूप अागम जनु होत हैं वधाये । राजभौन आसपास दीप वृक्ष के विलास जगति ज्योति यौवन जनु ज्योतिवंत प्राये ॥ मोतिनमय भीति नई चन्द्रचन्द्रिकानिमई पङ्कअङ्क अङ्कित भवभूरि भेद सो करी । मानहुँ शशि पण्डित करि जोन्ह ज्योति मण्डित श्रीखण्डशैलकी अखंड शुभ्र सुंदरी दरी २२एक दीपाति विभाति दीपति मणि दीपपांति मानहुँ भुवभूपतेज मंत्रिनमय राजै। पारे मणिखचित खरे बासन बहुबास भरे राखत गृह गृह अनेक मनहुँ मैन साजै॥ अमल सुमिल जलनिधान मोतिनके शुभ वितान तापर पलिका जराय जड़ित जीव हरषै। कोमलतापर रसाल तन सुखकी सेज लाल मनहुँ सोम सूरज पर सुधाबिंदु बरषै २३ फूलनके विविध हार घोरिलनि उरमत उदार बिच बिच मणि श्याम हार उपमा शुक भाखी । जीत्यो सब जगत जानि तुमसौं हरि हारि मानि मनहुँ मदन धनुषनिते गुण उतारि राखी॥ जल थल फल फूल भूरि अंबर पट वास धूरि स्वच्छ यच्छ कर्दम हिय देवनि अभिलाखे । कुंकुम मेदौयवादि मृगमद
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