२७७ रामचन्द्रिका सटीक । काल अतिरूपनिधान । खेलनको निकरे चौगान ॥ हाथ धनुष शर मन्मथरूप । संग पयादे सोदर भूप २ जाको जबहीं पायसु होइ । जाइ चढ़े गज वाजिन सोइ ॥ पशु- पतिसे रघुपति देखिये । अनुगत शेष महा लेखिये ३ वीथी सब असवारिन भरी। हय हाथिनसों सोहत खरी ॥ तरु- पुंजनसों सरिता भली । मानों मिलन समुद्रहि चली ४ ॥ १।२ जा गनपर औ जा वाजिपर चदिकै चलिबे को रामचन्द्र को आयसु जाको होत है सो तापर चढ़त है रामचन्द्रके अनु कहे पाछे गत कहे प्राप्त शेष लक्ष्मण हैं औ महादेव के अनु पश्चाद्भाग में गत प्राप्त शेष कहे शेषनाग हैं शेष को महादेव ग्रीवा में पहिरे हैं सो पृष्ठभाग में उरमत हैं इत्यर्थः कहूं अनुगण सैन पाठ है तौ अनु पश्चाद् गण समूह सैनको पेखियत है औ महादेवके अनु पश्चाद् गण वीरभद्रादिकनकी महासैन पेखियत ३ वीथी गली ४॥ यहि विधि गये राम चौगान । सावकाश सव भूमि स- मान || शोभन एक कोस परिमान । रचो रुचिर तापर चौगान ५ एक कोद रघुनाथ उदार। भरत दूसरे कोद विचार॥ सोहत हाथै लीन्हे छरी । कारी पीरी राती हरी ६ देखन लग्यो सबै जगजाल । डारि दियो भुव गोला हाल ॥ गोला जाइ जहां जहँ जबै । होत तही तितही तित सवै ७ मनों रसिक लोचन रुचि रचे । रूपसंग बहु नाचनि नचे ॥ लोक लाज़ छाड़े अँगअंग। डोलत जनु जनमनके संग ८ गोला जाके आगे जाइ । सोई ताहि चलै अपनाइ ॥जैसे तियगण कोपतिरयो। जेहि पायो ताहीको भयो : उतते इत इततें उत होइ । नेकहु ढील न पावै सोइ ॥ काम क्रोध मदमढ्यो अपार । मानों जीव भ्रमै संसार १०॥ सावकाश कहे फैलाव सहित और समान कहे नीच उच्चरहित ५ कोंद
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