पृष्ठ:रामचंद्रिका सटीक.djvu/२८१

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रामचन्द्रिका सटीक । २८१ कर्पूर ग्रादि वीरा वनितन बनाइ भाजन भरिराखे२४ पन्नगी नगीकुमारि प्रासुरी सुरी निहारि विविध बीन किन्नरीन किन्नरी बजावें।मानों निष्काम भक्ति शक्ति प्राय प्रापनीन देहन धरि प्रेमन भरि भजन भेद गावै ॥ सोदर सामंत शूर सेनापति दास दूत देश देशके नरेश मंत्रि मित्र लेखिये। बहुरे सुर असुर सिद्ध पंडित मुनि कवि प्रसिद्ध केशव बहु- राय राजराज लोक देखिये २५ ॥ पांच छंदको अन्वय एक है रैनिमें चंद्रिका समेत चंद्र चित्तको मोहत है प्रसन्न करत है अर्थ रात्रिके संगसों चंद्रिका समेत है चंद्र चित्त मोहत है सो मानों सुष्टु जो मति है ताके संगसों सुष्टु जो मन है ताके अंग आनंद- मय कहे स्वच्छ सुकृत मुकर्म के रंगसों रचे हैं. सुकृत को रंग श्वेत कवि- प्रिया में श्वेत गणना में कह्यो है “शेष सुकृत शुचि सत्त्वगुण संतनके मन- हास" सो मन सकल कहे पुत्र धनादि के सुखन सहित सोहत हैं सुकृतीको सब सुख प्राप्त होत हैं यह प्रसिद्ध है सुमतिसम रात्रि है सुमनसम चंद्रमा है। सुकृतसम चांदनी है ललित लतनके विलाससों उदास हैकै अर्थ त्याग करिकै मायासम लता हैं भक्तसम भ्रमर हैं कर औ नयन औ बैनसम कमल हैं बैनपदते इहां मुख जानौ छंद उपजाति है आसपास जे दीप वृक्ष कहे भाऊ हैं तिनके विलाससों राजभवनकी ज्योति जगति है जानों यौवन के प्राय शरीर की ज्योति जगति है इति शेषः। ताही राजभवन की चंद्र चंद्रिका निमयी कहे चंद्रिकनसों युक्त जो मोतिनमय भीति है ताहि भव जो संसार है ताके जे भूरि भेद हैं अर्थ अनेक विधि चित्र हैं तिन सहित पंक जो चंदनपंक है सासों सेवकन चित्रित करी है अर्थ भीतिनमें चित्र विचित्र चंदन पंक लग्योई सो श्रीखंड जो चंदन है ताको शैल मलयाचल अथवा चंदनही को निर्मित जो शैल है ताकी शुभ्र कहे श्वेत औ सुंदरी रुचिरदरी कंदरा को पंडित कहे चतुर जो शशि है सो जोन्ह ज्योति सों मंडित करी है चंदन लेपसों युक्त है तासों राजभवन को श्रीखंड शैलसम कह्यो है दरीसम गृहको उदर है ता भूपभवनमें ये दीप की युति विभाति कहे शोभित है औ मणि- दीप कहे भीतिनमें जटित मणिनमें प्रतिबिंबित जे दीप हैं तिनहूंकी पांति