पृष्ठ:रामचंद्रिका सटीक.djvu/२८०

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२७८. रामचन्द्रिका सटीक । | कहे ओर ६ जाहीं कहे तबै ७ रुचि कहे इच्छा रूप सुंदरता ८।६।१०।। जहां तहां मारे सब कोइ । ज्यों नर पंचविरोधी होइ ।। घरी घरी प्रति ठाकुर सबै । बदलत वासन वाहन तबै ११॥ दोहा । जब जब जीतें हाल हरि तब तब बजत निशान॥ हय गय भूषण भूरि पट दीजत लोग निदान १२ चौपाई॥ तब तेहि समय एक बेताल। पढ़यो गीत गुनि बुद्धि विशाल॥ गोलनकी बिनती सुख पाई । रामचन्द्रसों कीन्ही आई १३ दंडक ।। पूरवकी पूरा पूरी पापर पूरीसे तन बापुरी वैदूरि हीते पायन परति हैं । दक्षिणको पक्षिनीसी गच्छे अंतरिक्ष मग पश्चिमको पक्षहीन पक्षी ज्यों उरति हैं । उत्तरकी देती हैं उतारि शरणागतनि बातन उतायली उतार उतरति हैं। गोलनकी मूरति न दीजिये जू अभैदान रामवैर कहां जाइँ बिनती करति हैं १४॥ वासन वस्त्र ११ । १२ बेताल भाट गोजनकी विनती कहे गोलनकी तरफ सों बिनती रामचन्द्रसों करयो १३ यामें समय विचारि स्तुतिपूर्वक गोलनकी विनतिनके व्याज खेल खेलिबो मने करत हैं कहत हैं कि हे राम! पापर पूरी भेद प्रसिद्ध है श्री पूरी कहे पूरीसम हैं तन जिते कहे ऐसे जे पूर्व दिशा की पूरा कहे ग्राम पूरी कहे लघुग्राम हैं ते बापुरी द्रिही ते भयसों तुम्हारे पायन परती हैं औ दक्षिणकी पूरापूरी अंतरिक्ष आकाश के मग पक्षिणी सम गच्छती हैं पक्षहीन कहि या जनायो कि उड़ि जाइबो चाहती हैं पै पक्षहीनता सों रहि जाती हैं औ उत्तरकी पूरापूरी तुम्हारो विरोधी जो शरणागत है ताको उतारि देती हैं अथवा उत्तरमें पर्वत पर बसती हैं सो पर्वतसों उतारि देती हैं कैसे उतारि देती हैं कि वातनहूं करि कै उतायली जो जल्दी है ताके उतारमें उतरती हैं अर्थ यह कहती हैं कि तुम इहांसों जल्दी जाउ नहीं तौ रामचन्द्र जानि हैं तो हमको बिदारि हैं। यासों या जनायो कि उत्तर की पुरी दुर्गम पर्वतनहूं पर हैं तहांऊ तुम्हारे वैरीका नहीं राखि सकती तासों गोलनकी मूरति बिनती करती हैं कि राम-