२६४ रामचन्द्रिका सटीक । सोदर सुत मंत्रि मित्र दिशि दिशिके नृप विचित्र पंडित मुनि कवि प्रसिद्ध सिद्ध द्वार ठाढ़े।रामचन्द्र चन्द्रग्रोर मानहँ चितवत चकोर कुवलयजलजलधि जोर चोप चित्त बाढ़े २३ नचत रचत रुचिर एक याचक गुणगण अनेक चारण मा- गध अगाध बिरद बंदि टेरे । मानहुँ मंडूक मोर चातक चपकरत शोर तड़ित बसनसंयुत घनश्याम हेत तेरे। केशव सुनि वचन चारु जागे दशरथकुमारु रूपप्याइ ज्याइलीन जन जलथलोकके। बोलि हँसि विलोकि वीर दान मान हरी पीर पूरे अभिलाष लाख भांति लोकलोकके २४ ॥ टोल टोल कहे अॅड झुंड कैसे हैं करिदान जो मद है ताके कर्ता श्री श्लेषसों दाता औ मान कहे श्रादरकर्ता भ्रमर जात है तिन्हैं शिरपर बैठा- वत हैं दाता है आदर करै ताके समीप सब प्रसन्न है जात हैं इति भावार्थः॥ समृद्ध कहे सम्पत्तियुक्त कैसे हैं मुनिगण सिद्ध कहे आपने वश्य जो सिद्धि कहे तपसिद्धि अथवा असिद्धि हैं ति, धरे हैं अथवा गिरिगणनही को विशेषण हैं सिद्धि जो सिद्धि तपसिद्धि है तिनको धरे हैं अर्थ जिन पर्वतन मों जातही विन तप कियेही तपसिद्धि माप्त होति है मलिनगई कहे मलिनता | को प्राप्तभई वोध कहे ज्ञानसम तरणि जे सूर्य हैं तिनकी किरणें हैं कुबुद्धि- सम दीपज्योति है हृदयसम भूमंडल जानों निजज्योति अर्थ ब्रह्मज्योति उडु नक्षत्र आनंदकंद चन्द्रको विशेषण है सूर्य के प्रकाशके त्राससों निशि- चर कहे चोर परस्त्रीगामी कुलटादिके जे विलास श्री हास हैं ते निरास कहे नाश होत हैं औ भारे जे तम अंधकार हैं ते नाशत हैं औ शुभ कहे तपस्वी आदि प्राणी पूजादि कर्म तिनके सकल गात फूलत कहे प्रफुल्लित होत हैं हे राम ! जैसे तुम्हारे नामको मुखमें लेत शुभ जे मंगलादि हैं तिनके गात प्रफुल्लित होत हैं औ शैल कहे पर्वत सम अशुभ अमंगल विलात हैं मदनरूपी जो पंडित ऋषि कहे पंडित श्रेष्ठ हैं गुदरैनि परीक्षा रामचंद्ररूपी 'जे चंद्र तुमहौ तिनकी ओर दर्शन के चोप चित्तन में जोर कहे अतिबाढ़े हैं। जिनके ऐसे चकोर औ कुबलय कोई औ जलधिके जल हैं मानों या प्रकारसों दरादि द्वार पर गड़े चितवत हैं एकै अर्थ नृत्यकारी नचत हैं
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