पृष्ठ:रामचंद्रिका सटीक.djvu/३०३

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Barat रामचन्द्रिका सटीक । परिघादि दंड आयुध जानो दलपत्र औ चमूद्विन चक्रवाकादि पक्षी अथवा दंत इहां दंत पदते बीज जानो ौ ब्राह्मण ::::: तप जानो कुल कहे ज्ञातिसमूह परमहंस पक्षी औ तपस्वी विशेष कोष कहे सिफाकंद.ओ खजाना औ दुर्ग कोटरूपी जो लता है ताके बल की कहा बड़ाई कहौं इत्यर्थः विधि ब्रह्माको आसन है ता संबंधसों विधिवल जानौ जलज चन्द्रहू कमलहू है तासों ता संबंधसों चन्द्रवल जानौ लक्ष्मी को कमल में 'सदा बास रहत है ता संबंधसों श्रीको बल जानौ श्रीश विष्णु सदा करमें लिये रहत हैं तासों श्रीशयल जानौ औ मित्र ने सूर्य तिनहूं को बल पल पल में रक्षा करत है. यद्यपि येते सब बलहैं परंतु मित्र जे तुमहौ तिनके बलसों कमलन को हीन जानिकै ये जे अबला सीयदासी हैं तिनके मुखनवलसों कमल की जो कमला कांतिरूपा लक्ष्मी है ताहि छड़ाय लीन्हों है अबला पद कहि रामबल की अति उत्कृष्टता जनायो २१ पूर्णचन्द्रयुक्त जो पूर्णिमा की रात्रि है सो राका कहावती है " पूर्णे राका निशाकरे इत्यमरः" याहू में प्रसिद्ध विषय हेतूत्मेक्षा है २२॥ विशेपकछंद ॥ भूषण ग्रीवनके बहुभांतिन सोहत हैं । लाल सितासित पीत प्रभा मनमोहतहैं ॥ सुंदर रागनके बहुबालक आनि बसे । सीखनको बहुरागिनि केशवदास लसे २३ चौपाई॥हरिपुरसी सुरपूरदूषिता। मुक्ताभरण प्रभा भूषिता॥ कोमलशब्दनिवन्त सुवृत्त । अलंकारमय मोहन मित्त ॥ काव्या पद्धति शोभा गहे। तिनके बाहुपाश कवि कहे २४ ॥ राग भैरवादि २३ अपनी छवि करिकै सुरपुर की अर्थ सुरपुर की स्त्रिनकी दूषिता कहे निंदा करनहारी हैं श्री मुक्ता जे मोती हैं तिनके जे आभरण भूषण हैं तिनकी प्रभासों भूषित हैं तासों हरिपुर विष्णुलोकसों है हरिपुर कैसो है कि आपनी छवि सों देवलोक को निंदत है अर्थ देव- लोक सों अधिक है औ मुक्त कहे मुक्ति को प्राप्त जे जीव हैं तेई हैं आभरण भूषण तिनकी प्रभासों भूपित हैं अर्थ अनेक मुक्तजीवन सों युक्त हैं फेरि कैसी हैं कि कोमलशब्दनिवंत हैं अर्थ मधुर वचन बोलती हैं औ सुष्टु हैं मुवृत्त कहे चरित्र जिनके औ माल्यादि अलंकार युक्त हैं औ मित्र जो स्वामी हैं ताको मोहन कहे मोहकर्ता हैं औ तिनके बाहुनको पाश कहे