पृष्ठ:रामचंद्रिका सटीक.djvu/३०२

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रामचन्द्रिका सटीक । ताही मुसकानि लता के फूल से जानौ १६ द्वैछंदको अन्वय एक है अलि- कलिलार दशा बाती मानो रवि सींक पसारिकै ज्योति बढ़ावत है रविपद को संबन्ध याहूमों है कवि जे शुक्र हैं तिनके हितकहे चढाइ लीबे के अर्थ इत्यर्थः शुक्रसम नाकमोती हैं रविसम शीशफूल हैं १७ ।। ज्योति बढ़ावत दशा उतारि । मानहुँ श्यामलसींक प- सारि ॥ जनु कविहित रविरथते छोरि । श्यामपाटकी बांधी डोरि १८ रूप अनूप रुचिररस भीनि । पातुर नैनन की पुतरीनि॥नेह नचावत हित रतिनाथ । मरकत लकुटि लिये जनु हाथ १६ दोहा ।। गगन चन्द्रते अति बड़ो तिय मुख चन्द्रविचारुदई विरंचि विचारिचित कला चौगुनी चारु२०॥ १८ ताही अलक में दूसरी उत्प्रेक्षा करत हैं पुतरिनको जो अनूप रूप है तापति जो रुचिररस कहे प्रेम है तामें भीनि कहे भीजिकै अर्थ वश्य हैकै पातुर कहे वेश्या अर्थ कामकी वेश्यारूपी जे नयनकी पुतरी हैं तिनको | रतिनाथ जो काम है ताके हितसों मानो मर्कत कहे श्याम लकुट हाथमों लैक स्नेह नचावत है शिक्षक लकुटके ताल में वेश्या को नृत्य सिखावत हैं यह प्रसिद्ध है अथवा कहूं भीनी पाठ है तो अनूपरूप कहे अतिसुंदर श्री रुचिर जो रसप्रेम है तामें भीनी कहे युक्त पातुररूपी जे नयन की पुतरी हैं तिनको रतिनाथके हितसों नेह नचावत है इत्यर्थः १६ चन्द्रमा में सोरह कला है मुख में चौंसठि हैं चौंसठि कला प्रसिद्ध हैं २० ॥ दंडक ॥ दीन्हों ईशदंडबल दलबल दिजबल तपबल प्रबल समेति कुलवलकी । केशव परमहंस बल बहुकोष बल कहा कहाँबड़ीपैबड़ाई दुर्गजलकी ॥ विधिबलचन्द्रबल श्री को बल श्रीशबल करतहैं मित्रबल रक्षा पल पलकी । मित्रबल हीन जानि अबलामुखनिवल नीकेही छड़ाइलई क- मलकमलाकी २१ दोहा॥ रमणीमुखमंडल निरखि राकारमण लजाइ ॥ जलद जलधि शिवसूरमें राखत बदन दुराइ २२ ॥ ईश जे ईश्वर हैं तिन दंड जो नाल है ताको यल दीन है औ श्लेषसों