पृष्ठ:रामचंद्रिका सटीक.djvu/३०८

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रामचन्द्रिका सटीक। ३११ सबके चंचल लोचन ऐसे चलत भये जैसे वात कहे वायुसों मनसेचन कहे मनको सुखद पंकज कमल चलै २। ३ कुंजीसों मानो ज्ञान के कपाट खोलत हैं ज्ञानिनके कामोद्भवकरि ज्ञानको दरि करत हैं इत्यर्थः ४ वंदन रोरी ५ मधु जो वसंत है तामें वन जो बाग है ताके मध्य दाडिमको फूले देखिके शुक निश्शंक वर्णत हैं दाडिम पदको संबंध इहांऊ है मानो हाटक जो सुवर्ण है तासों घटित कहे रचित षट्ऋतुरूपी जे युवती स्त्री हैं तिनके ताटंक ढार हैं भाषा में ऋतुशब्द स्त्रीलिंग है यथा रसराजकाव्ये " आई ऋतु सुरभि सुहाई प्रीति वाके चित्त ऐसे में चलै तौ लाल रावरी बड़ाई है " अथवा ऋतु करिकै घटित बनाये ६ बेल कहे बेला करवीर कनैल ७ केतक कहे | केंवराते भ्रमर श्रीरामचन्द्रको निकट आवत देखिकै भागत भये जे भ्रमर पाणी में अपलोक पाप के सम केतक पुंजमें अनुरागे हैं जैसे ध्यान में अथवा साक्षात् रामागमन सों पाणी के अपलोक दूरि होत हैं ते केतकके निकट आवत भ्रमर भागत भये इत्यर्थः ८ शोण अरुण मधु कहे वसंतऋतुरूपी जो वायु है ताके विलास सों मानो महादेव करिकै जारगो जो काम है ताके कैला फेरि जरैं कहे सुपचत हैं ६ ॥ तोटकछंद।। बहुचंपककी कलिका हुलसी। तिनमें अलि श्यामल ज्योति लसी ॥ उपमा शुक सारिक चित्त घरी। जनु हेमकुपी रससोंधु भरी १० चौपाई ॥ अलि उड़ि धरत मञ्जरी जाल । देखि लाज साजति सब बाल || अलि अ. लिनी के देखत भाई । चुंबत चतुर मालती जाई ११ अद्भुत गति सुंदरी विलोकि । विहँसतिहैं धूंघुटपट रोकि ॥ गिरत सदाफल श्रीफल प्रोज। जनु धर धरत देखि वक्षोज १२ तारकछंद ॥ उदरे. उर दाडिमदीह विचारे । सुदतीनके शोभन दंत निहारे॥अतिमंजुलवंजुल कुंजविराजै।बहुगुंज- निकेतन पुंजनि साजै ॥ नर अंध भये दरशे तरु मौरे । तिनके जनु लोचनहैं यकठौरे १३ ॥ हुलसी कहे फूली शृंगाररस सदृश भ्रमर हैं औ सोंधु सुगंध है ही है