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पृष्ठ:रामचंद्रिका सटीक.djvu/३०९

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३१२ रामचन्द्रिका सटीक । चंपक पै मैंवर वैठिबे को वर्णन कमिनियम विरुद्ध है परंतु केशव बड़े कवि हैही हैं कछू विचारही कै कयो हैहै तासों दोष नहीं है अथवा गंधहीन होति है कली तासों कह्यो है १० । ११ सदाफल जे श्रीफल बिल्व हैं ते गिरत हैं सो मानो तिन स्त्रिनके वक्षोज को ओज कहे प्रतापकांतिको देखिकै भयसों मानो उन्नत आसन को त्यागकरि घर पृथ्वी को धरत हैं अर्थ नत होत हैं १२ दाडिमफलन के उरपाफिकै उदरे कहे फाटिगये हैं सो मानो सुदती कहे सुंदर हैं दंत जिनके ऐसी जे सीताकी दासी हैं तिनके सुंदर दंतही निहारिकै स्पर्धा सों फाटिगये हैं वंजुज्ञ अशोक गुंजनिकेतन कहे भ्रमर मौरे कहे बौरे अर्थ अशोक वृक्षन के दरशे नर अंधकहे कामांध भये तिन नरन के मानो लोचनही एकठौरे हैं बौरे अशोक वृक्षनको जनु देख्यो तिनके लोचन तहाई लागिरहे ताही सों ते अधमभये हैं इत्यर्थः १३॥ थलशीतल तप्तस्वभावनि साजै।शशि सूरजके जनुलोक विराजै॥जलयंत्र विराजत भांति भली है । धरते जलधार अकाश चली है ॥ यमुनाजल सूक्षम वेश सँवारेउ | जनु चाहतहे रवि लोक विहारेउ १४ चंचरीछंद ॥ भांति भांति कहाँ कहां लगि वाटिका बहुधा भली । ब्रह्मघोष घने तहां जनु हैं गिरावन की थली ॥ नीलकंठ नचें बने जनु जानिये गिरिजा बनी । शोभिमैं बहुधा सुगंध मनो मलै घनकी धनी १५ ॥ चौपाई ॥ करुणामय बहुकामनि. फली । जनु कमलाकी वासस्थली ॥ शोभे रंभा शोभा सनी। मनो शचीकी प्रानँदबनी १६ ॥ • उष्ण समय बैठिबे के जे स्थल हैं ते शीतलस्वभावको साजत हैं शीत समयं बैठि कहे तप्तस्वभाव साजत हैं शशिको लोक शीतल है सूर्यको तप्त है जलयंत्र फुहारे १४ वाटिका में ब्रह्मघोष कहे वेदशब्द पाठशाला बनी हैं तिनमें शिष्य पढ़त हैं अथवा तपस्वी टिके हैं ते वेदपाठ करत हैं अथवा अन्यत्र ऋषिनके आश्रमन सों सीखिकै शुकादि पक्षी वेद इहां आइ पढ़त हैं औ गिरा सरस्वती के उपवन में ब्रह्मा को शब्द नीलकंठ वाटिका में मोर गिरिजावनी में महादेव धनी कहे रानी १५ वाटिका करुणा जे वृक्ष