पृष्ठ:रामचंद्रिका सटीक.djvu/३१२

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रामचन्द्रिका सटीक । पिता हैं तिनके लोक मानो अज जे ब्रह्मा हैं तिनको लोक ब्रह्मलोक बन्यो है २२ शील कहे स्वभाव ताप रि करणादि २३ सुरगज ऐरावतकी राह आकाशमों रात्रिकै उवति है प्रसिद्ध है जुही कहे जाही जूही पुष्प विशेष हैं २४ तिलक सों अर्थ राज्याभिषेक तिलकसों २५ एणनको मद कस्तूरी पूजी कहे पूरित अर्थ मानो यामें यमुनाकी शोभा आइ बसी है रसराज भंगाररस पंकज इहां श्याम कमल जानौ २६ क्रीड़ागिरिरूपी जो मातंग है ताकी श्रृंखला क्षुद्रघंटिका है अथवा आंदू है २७ कियौं रघुवंशिन के इति शेषः प्रतापाग्निकी पदवी राह है अग्निकी राह श्याम होती है २८॥ २६ ॥ स्वागताछंद ॥ लौंग फूलमय सेवटि लेखी । एलवीज बहुबालक देखी ॥ केरिफूलदलनावन माहीं। श्रीसुगन्ध तहँ हैं बहुधाही ३० दोहा ॥ खेवत मत्त मलाह अलि को बरणै वह ज्योति ॥ तीन्यों सरिता मिलित जहँ तहां त्रिवेणी होति ३१ सीता श्रीरघुनाथजू देखी श्रमित शरीर।। द्रुम अवलोकन छोड़िक गये जलाशयतीर ३२ चौपाई ॥ आई कमल बासु सुखदेन । मुखबासन आगे है लेन ॥ देख्यो जाइ जलाशय चारु।शीतल सुखदं सुगंध अपारु ३३ मरहट्टाछंद ॥ वनश्री को दर्पनु चन्द्रातप जनु किधों शरद श्रावास । मुनिजनगन मनसों विरहीजनसों विश वलयानि विलास ॥ प्रतिबिंबित यिर चर जीव मनोहर मनु हरि उदर अनंत । बंधुनयुत सोहैं त्रिभुवन मोहैं मानो बलि यशवंत ३४॥ नदिन में सेवटि परिजाति है कहूँ सेवटाकरि प्रसिद्धहै एला इलायची केरि कहे केराके फूलके जे दल पत्र हैं तेई नाव हैं तिनमें सुगंध जो है सोई श्री कहे वाणिज्य द्रव्य है ३० । ३१ जलाशय तड़ाग ३२ जब कोऊ बड़ो आपने इहां आवत है ताको आगे चलिक लेबो उचित है ३३ वनकी जो श्री लक्ष्मी है ताको दर्पण है कि चन्द्रातप कहे चांदनी है कि शरदऋतुको आवास घर है मुनिजन के मन सम विमल है इत्यर्थः ॥ तड़ागविश जो