पृष्ठ:रामचंद्रिका सटीक.djvu/३११

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रामचन्द्रिका सटीक । नित हानि असौंधहिको गुनिये १६ दोहा॥तपहीको ताउन जहां तृप चातकके चित्तं ॥ पात फूल फल दलनि को भ्रम भ्रमरनिके मित्त २० तारकछंद ॥ तिनमें इक कृत्रिम पर्वत राजै । मृग पक्षिनकी सब शोभहि साजै ॥ बहुभांति सुगंध मलयगिरि मानो। कलधौत स्वरूप सुमेरु बखानो २१ प्रति शीतल शंकरको गिरि जैसो । शुभश्वेत लसै उदयाचल ऐसो॥ द्युतिसागरमें मैनाक मनो है । अजलोक मनो अज लोक बनो है २२ तोटकछंद ।। सरिता तिनते शुभ तीनि चली। सिगरी सरितानकि शोभदली॥ इक चंदन के जल उज्ज्वल है । जग जनुसुता शुभ शील गहै २३ चौपाई ॥ सुरगजकी मारग छविछायो।जनु दिविते भूतलपर आयो। जनु धरणी में लसति विशाल । त्रुटित जुहीकी घन वन- माल २४ दोहा॥ तज्यो न भावै एक पल केशव सुखद स- मीप ॥जासों सोहत तिलक सो दीन्हे जंबूद्वीप २५ दोषक छंद ॥ एणनके मदकै जनु दूजी । है यमुनाद्युति कै जनु पूजी ॥ धार मनो रसराज विशाला । पंकजजालमयी जनु माला २६ दोहा ॥ दुखखंडन तरवारि सी किधों श्रृंखला चारु॥क्रीड़ागिरि मातंगकी यहै कहै संसारु २७ क्रीड़ागिरि ते अलिन की अवली चली प्रकास ॥ किधौं प्रतापानलनकी पदवी केशवदास २८ दोधकछंद ॥ और नदीजल कुंकम सोहै ॥ शुद्धगिरा मन मानहुँ मोहै ॥ कंचन के उपवीतहि साजै। ब्राह्मणसों यह खंड विराजे २६ ॥ सब जीवनको असौंध दुर्गध १६ पात कहे पतन २० कृत्रिम कहे बनायो कलधौत स्वरूप कहे सुवर्णमय है अर्थ सुवर्णही को बन्यो है २१ मैनाक सागर में है यह युति शोभारूपी सागरमें है अज जे दशरथ के