३२२ रामचन्द्रिका सटीक । ज्यों जगके संयोगते योगी जन समताहि ३२ झूलनाछंद ।। मन मानिकै अतिशुद्ध सीतहि श्रानियो, निज धाम । अव- लोकि पावक अंक ज्यों रविअंक पंकजदाम ॥ क्यहि भांति ताहि निकारिही अपवाद बादि वखानि । शिव ब्रह्म धर्म समेत श्रीपितुसाखि बोल्यहु प्रानि ३३ यमनादिके अपवाद क्यों द्विज छोड़ि है कपिलाहि । बिरहीनको दुख देत क्यों हर डारि चंद्रकलाहि ॥ यहहै असत्य जो होइगो अपवाद | सत्य सुनाथ । प्रभु छोड़ि शुद्ध सुधा न पीवह आपने विष हाथ ३४ दोहा । प्रिय पावनि प्रियवादिनी पतिव्रता अति शुद्ध ॥ जगको गुरु अरु गुर्विणी छांड़त वेद विरुद्ध ३५ वे माता वैसे पिता तुमसों भैया पाइ ॥ भरत भये अपवादको भाजन भूतल प्राइ ३६ ॥ ३० पाखंडी नास्तिक ३१ अपवाद निंदा समताको लक्षण पचीसयें प्रकाश में कह्यो है ३२ दाम जेवरी बादि वृथा ३३ यह जो ब्रह्मादिकन की साक्षी है सोई जो असत्य है तो हे नाथ ! रजककृत यह अपवाद कैसे सत्य है इत्यर्थः सुधासम ब्रह्मादिकनकी साक्षी है विषसम रजक को अपवाद ३४ । ३५ | ३६॥ राम-हरिलीलाछंद ॥ सांची कही भरत बात सबै सु- जान । सीता सदा परमशुद्ध कृपानिधान ।। मेरी कछू अवहिं इच्छ यहै सो हेरि।मोको हतो बहुरि बात कहौ जो फेरि ३७ लक्ष्मण-दोधकछंद ॥ दूखत जैन सदा शुभगंगा । छोड़हुगे बहुतुंगतरंगा ॥ मायहि निंदतहैं सब योगी । क्यों तजिहें भव भूपति भोगी ३८ ग्यारसि निंदतहैं मठधारी। भावति है हरिभक्तनि भारी ॥ निंदत हैं तव नाम निवामी । का कहिये तुम अंतर्यामी ३६ दोहा॥ तुलसीको मानत प्रिया
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