रामचन्द्रिका सटीक। ३४५ १ जामवंत श्री हनुमंत दुरंत कहे दुःख करिकै पाइयत है अंत पार जिनको अर्थ प्रतिबड़ी श्री अनंत कहे अनेक शोण रुधिरकी सरिता वही हैं जामें ऐसी जो रणकी भीम भयानक भू है ताको विलोक्यो बड़े पताका धजा कहावत हैं छोटे पताका कहावत हैं २ सुठि शूर अर्थ अतिशूर जे सन्मुख घावसहि मरे हैं ठेलि कहे टारि पेलि कहे दबाइकै जैसे शिलनको दारि नदिनको पूरप्रवाह चलत है तैसे इहां पर्वतसम जे गज रथ हैं तिनको टारिकै शोणित के पूर चले यासों अतिगंभीरता औ वेगता जो नदीहू तीर गृध्र रहत हैं इहांऊ हैं औ श्वेत हरे हैं अंगलोम जिनके ऐसे जे वृद्धपाणी हैं तेई इंसह ३ केकरे गेंगटा-भुजंग सर्प ४ ॥ दोहा । नाम वरण लघुवेष लघु कहत रीमि हनुमंत ॥ इतो बड़ो विक्रम कियो जीते युद्ध अनंत ५ भरत-तारक छंद ॥ हनुमंत दुरंत नदी अब नाखौ । रघुनाथ सहोदर जी अभिलाखौ ॥ तब जो तुम सिंधुहि नांधिगयेजू । अव नांवहु काहे न भीतभयेजू ६ हनुमान-दोहा ।। सीतापद सन्मुखहुते गयों सिंधुके पार ॥ विमुख भये क्यों जाहुँ तरि सुनो भरत यहि बार ७ तारकछंद॥धनु बाण लिये मुनि बालक पाये। जनु मन्मथके युगरूप सुहाये ॥ करिये कह शूरनके मद- हीने । रघुनायक मानहुँ दै वपु कीने ८ भरत ॥ मुनिवालक तुम यज्ञ करावो । सुकिधों वरवाजिहि बांधन धावो ॥ अपराध क्षमो सवाशिष दीजै। बरवाजितजो जिय रोप न कीजै दोहा ।। बांध्यो पट्ट जो शीश यह क्षत्रिन काजप्र. कास | रोष करेउ बिन काज तुम हम विप्रनके दास १० ॥ वर्ण कहे नामके अक्षर ५ रघुनाथ सहोदर जे शत्रुघ्न औ तिनको जीमें अभिलाषौ अर्थ या नदी नांधि लक्ष्मण शत्रुघ्नको देखो जाय ६।७।८ मुनिनके बालकनको यज्ञ कराइवो उचित है अश्व बांधि यज्ञ रोकियो उचित नहीं है इति भावार्थः ।। १०॥ कुश-दोधकछंद ॥ बालकवृद्ध कहो तुम काको। देहनि out
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