रामचन्द्रिका सटीक । विचारी। ढगइ केशवदास तहीं सब भूमि प्रकाश प्रका- शित भारी । शुद्ध शलाकसमान लसी अतिरोषमयी दृग दीठि तिहारी। होत भये तबसूर सुधाधर पावक शुभ्र सुधा रंगधारी २७ ॥ दोहा ॥ केशव विश्वामित्र के रोषमयी हग जानि ॥ संध्यासी तिहुँलोक में किहिनि उपासी आनि २८ जनक-दोधकछंद ॥ ये सुत कौनके शोभहिं साजे । सुंदर श्यामलगौर विराजे । जानत हौं जिय सोदर दोऊ । के कमला विमलापति कोऊ २६ ॥ जिनके लोक रचना रविवेकी सामर्थ्य है तिनको वचन रचना करिबो कहा है २६ परिपुरण बुद्धि कहे निश्चय बुद्धिसों बुद्धि भूमि औ आकाशमें प्रकाशित भई अर्थ फैलत भई अथवा भूमि आकाशसहित प्रकाशितभई प्रकट भई अर्थ सच विषय हस्तामलकवत् देखि परयो तासमय शुद्ध कहे तीक्ष्ण शलाका बाण समान तिहारी रोपमयी दृष्टि लसी तासों सूर सूर्य सुधाधर चन्द्रमा सरिस भयो औ अग्नि अमृतके रंग भये अर्थ अतिभयसों तेजहीन श्वेत भये "शलाका शल्यमदनशारिका शल्यकीषु च छत्रादिकाष्ठी- शरयोरिति मेदिनी " २७ संध्यासम अरुणनेत्र भये तब जैते नीनोलोक में सब दोष निवारणार्थ संध्याकी उपासना करत हैं तैसे रापनिवारणार्थ ब्रह्मादि सब उपासना करत भये अर्थ सब प्राधीन है स्तुति करत भये२८ दुहुँनको सम सौंदर्यादि देखि यह मैं जी में जानत हौं कि ये दूनों सहोदर सगेभाई हैं श्री के कोऊ कहे कौनो रूपधारी कमलापति विष्णु विमला- पनि ब्रह्मा हैं आशय यह कि इनमें विष्णु ब्रह्मासम सौंदर्यादि गुण हैं २६॥ विश्वामित्र ॥ सुंदर श्यामल राम सुजानो। गौर सु ल- क्ष्मणनाम बखानो ॥आशिष देहु इन्हें सब कोऊ । सूरजके कुलमंडन दोऊ ३० दोहा ॥ नृपमणि दशरथ नृपतिके प्र- कटे चारि कुमार ॥ राम भरत लक्ष्मण ललित अरु शत्रुघ्न उदार ३१ घनाक्षरी ॥ दानिनके शीलपर दानके प्रहारी दीन दानवारि ज्यों निदान देखिये सुभायके । दीपदीपहूके