रामचन्द्रिका सटीक यहौ पाठ है ४२ उत्तमगाथ कहे गान जिनको औ सनाथ विश्वामित्र स- हित गुणवंत रोदायुक्त श्री धनुष बचत में तिरछी दृष्टि परति है सोई ना- राच वाण हैं तासों संयुत कियो राजकुमार जे रामचन्द्र हैं ते स्नेह सहित निहारिकै शम्भुको शरासन सांचो कीन्हों " शरान् अस्यति क्षिपतीति शरासनः" अर्थ धन्धी शरन को चलावत है जासों नासो परासन कहावत है सो कटाक्षरूपी शर युक्तकरि सत्य कियो ४३ धनुभंग को जो शब्द है सो चंड कहे प्रचंड जो कोदंड धनुष है ताको जो प्रथम टंकोर बँचिवेको शब्दहै ताके साथही इविशेषः यायों प्रथमटकोरहीके संग धनुष टूटिवो जनायो कि कहे क्रुद्ध है अर्थ क्रूरताको प्राप्त हैकै संसार को मद झारिकै अर्थ संसार के सबमाणिन को कादर करिकै नवह खंडमें मंडि कहे बाय रह्यो श्री फेरि अ- चला जो पृथ्वी है औ अचल पर्वतनको चालि कहे चलाइकै औ दिकपाल इंद्रादिकनके क्लको घालिकै अर्थ विश्वल कारकै औरामचन्द्र धनुष उठाइहैं यह वचन विश्वामित्र को जनकप्रति को ताको पालिक औ ईश महादेव को शोध कहे खोज संदेश इति देकै औशीरसागर में सोक्त जगदीश विष्णु हैं तिन्हें घोधि कहे जगाइकै अौ भृगुनंदन परशुराम के क्रोध उपजाइकै औ स्वर्ग को वांधिकै को स्वर्गभरे मों व्याप्त है औ बाधि पाठ होइ तो स्वर्गको बाधा कारकै अर्थ वेधिकै अथवा स्वर्ग के प्राणिन को विह्वल करित या प्रकार ब्रह्मांड को वेधि के मुक्ति को साधि साधन कारकै गयो अर्थ ब्रह्मांड फोरि विष्णुलोकको भातभयो ऐसो उच्चशब्दभयो इति भावार्थःऔरामचन्द्र के करस्पर्शसों याही विधि सबको मुक्ति मिलति है इति व्यंग्यार्थः ४४ ॥ जनक-दोहा॥ शतानंद आनंद मति तुमज हुते उन साथ ।। बरज्यो काहेन धनुप जब तोखो श्रीरघुनाथ ४५ शतानंद-तोमर ॥ सुनि राजराज विदेह । जवहीं गयो वहि गेह । कछु मैं न जानी बात । कब तोरियो धनु तात ४६ दोहा ॥ सीताज रघुनाय को अमलकमलकी माल ॥ पहि- राई जनु सबनकी हृदयावलि भूपाल ४७ चित्रपदा छंद ॥ सीय जहीं पहिराई । रामहि माल सुहाई ॥ दुंदुभि देव वजाये । फूल तहीं बरसाये ४८॥ इति धनुर्भङ्गवर्णनं नाम पञ्चमः प्रकाशः॥५॥
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