रामचन्द्रिका सटीक । ४५ । ४६ सीता में भूपालन के हृदय लगे हैं तिनको क्षेषि माल बनाई मानो रामचन्द्रको पहिरायो हृदयको कमलसदृश वर्णन है तासो ४७॥४८॥ इति श्रीनजगजननिजनजानीजानतीजानिपलानानाननमार- निर्मितायां नमारियाशिनादां पञ्चमः प्रकाशः ॥५॥ दोहा ।। छठे प्रकाश कथा रुचिर दशरथ पागम जानि॥ लगनोत्सव श्रीरामकी ब्याहविधान बखानि १ शतानंद- तोटकछंद ॥ विनती ऋषिराजकि चित्त धरौ । चहुँभैयन के अब व्याह करौ ॥ अब बोलहु बेगि वरात सबै । दुहिता समदौ सुत पाइ अवै २ दोहा । पठई तवहीं लगन लिखि अवधपुरी सब बात ॥ राजादशरथ सुनतही चाह्यो चली बरात ३ मोटकछंद ॥ श्राये दशरत्य बरात सजे । दिकपाल गयंदनि देखि लजे ॥ चासो दल दूलह चार बने । मोहे सुर औरनि कौन गने ४॥ १ दशरथकी प्रभुता मुनि श्री रामचन्द्र को पराक्रम देखि जनक चारों सुतकें ब्याह करिवेको विश्वामित्रसों बिनती कीन्हीं सो शतानंद विश्वा- मित्र को समुझावत है कि हे ऋषिराज ! जनककी विनती चित्त में धरौ समदौ विवाहको २ राजादशरथ के लग्नपत्री मुनतही चारों वसते चली अर्थ चारों बरातें साजि राजादशरथ ब्याहिये को चले ३ ॥ ४ ॥ तारकछंद । बनि चारि बरात चहूदिशि आई । नृप चारि चमू अगवान पठाई । जनु सागर को सरिता पगु- धारी । तिनके मिलवे कह बाँह पसारी ५ दोहा ॥ बारोठे को चारु करि कहिकै सब अनुरूप ॥ द्विज दुलह पहिराइयो पहिराये सब भूप ६ त्रिभंगीचंद ॥ दशरथसँघाती सकल बराती बनिबनि मंडपमाँह गये। आकाशविलासी प्रभा- प्रकाशी जलजगुच्छ जनु नखत नये ॥ अति सुंदर नारी सब सुखकारी मंगलगारी देनलगीं। बाजे बहुबाजत जनु
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