पृष्ठ:रामचंद्रिका सटीक.djvu/५९

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रामचन्द्रिका सटीक । जिनको अर्थ जिनके चरित्र कहि सुनि ससार के पाणी शुद्ध होत हैं १७ जैसे मगमें अतिप्यासोमाणी जलमात्रको चाहत है औ वह भाग्ययोग ते गगाजल पावै तौ चाकी एक प्यासही नहीं घुझाति दैहिक दैविक भौतिक ने तीनों ताप हैं तिनको बल बुझात है अर्थ त्रयताप दूरि होत हैं तैसे केवल धनुष चढ़ायै ताही को ब्याह करिये हमारी इतनीही प्रतिज्ञापूर्वक इच्छा रही सो सुमते हमको फेवल ब्याह इच्छापूर्णरूपही मुख नहीं भयो रामचन्द्र को मुख देखि रूप वल विधा कुलादि के काम अभिलाष पूजे पूर्ण भये १८ ॥ जनक-सवैया। सिद्धसमाज सजें अजहू न कहू जग योगिन देखन पाई । रुद्रके चित्त समुद्र बसें नित ब्रह्महु पै बरणी जो न जाई ।। रूप न रगन रेख बिशेख न आदि अनंत जो वेदन गाई । केशव गाधिके नद हमैं वह ज्योति सो मूरतिवत दिखाई १६ अन्यच्च-तारकछंद ।। जिनके पुरिखा भुव गंगहि ल्याये। नगरीशुभस्वर्ग सदेह सिधाये। जिनके सुत पाहनते तिय कीनी । हरको धनुभंग भ्रमे पुर तीनी २० जिन पापु अदेव अनेक सँहारे । सबकाल पर- दरके रखवारे॥जिनकी महिमाहिको अंत न पायो। हमको बपुरा यश वेदनि गायो २१ विनती करिये जन ज्यों जिय लेखो। दुख देख्योज्यों काल्हि त्यों आजहु देखो|यह जानि हिये ढिठहै मुखभाषी । हम हैं चरणोदक के अभिलाषी २२॥ रुद्र महादेव के चित्ररूपी समुद्रमें जो बसत हैं अर्थ जाको महादेव आराधन करत है १६ तीनि छदको अन्वय एक है भगीरथ सगर के सुमन के तारिचेको गंगाको न्याये हैं औ हरिश्चन्द्र नगरी अयोध्यासहित स्वर्ग को गये दुवौ कथा प्रसिद्ध हैं औ जिनके मृत रामचन्द्र गौतमीको पाहनसों खी कीन्हीं और हरका धनुपभंग कीन्हो मा धनुष में तीनिपुर कहे नीनि लोक भ्रमे अब जा धनुपरो तीना लोकके माणिन उगया ना उत्यो तब भ्रमे काहे सदहका प्राप्त भये प्रथा ऐसी अाम्पा म एमो धनुप तोस्यो यामों नौनिह लोक भ्रमे औ भाए कैमे है कि जिन कि प्रदेव दैत्यन