पृष्ठ:रामचंद्रिका सटीक.djvu/६०

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

रामचन्द्रिका सटीक । को मास्यो है श्री सदा पुरदर इद्रकी रक्षा करतही यासों या जनायो कि ऐसे उद्धतकर्म परिबेको तुम्हार घरकी परपराकी रीति है अनन्त शेष औ जिनकी महिमा महि अन्त न पायो पाठ होइ तो मही भरे के प्राणिन की महिमा को प्रत नहीं पायो यह पिनसी करियत है कि हमको अपने जन सेवक के समान जियमें लेखो कहे जानौं भी जैसे कान्हि हमारे इहा वास करि दुःख देख्योहै तैसे आगहू देखो अर्थ आजह वास करौ हम चरणो- दक कहे चरणजल के अभिलाषी हैं तासों एती ढिठाई मुखसों भाष्यो है यह तुम जीमें जानि कहे जानौ चरणोदक के अभिलाषी कहि या जनायो कि हमारे घर में चलि भोजन करो जाते हम चरण धोइ चरणोदक ले. जाते हमारे ग्रहादि पवित्र हो. या भांति निमत्रण दियो २०।२१।२२ ॥ तामरसछंद ॥ जब ऋषिराज बिनयकरि लीनो । सुनि सबके करुणारस भीनो॥ दशरथराय यहै जिय जानी। यह |वह एक भई रजधानी २३ दशरथ-दोहा॥ हमको तुममे नृपतिकी दासी दुर्लभ राज ॥ पुनि तुम दीनी कन्यका त्रिभुवनकी शिरताज२४ भारद्वाज-तामरसछद॥ सुख दुख आदि सबै तुम जीते । सुरनरको बपुरा बलरीते ॥ कुलमा होहि बड़ो लधु कोई । प्रतिपुरुषान बड़ो सो बडोई २५ ॥ ऋषि शतानद राजा जनक २३ । २४ प्रतिवली जे दुख सुखादि हैं आदि पद से काम क्रोधादिह जानौ तिनहीं को तुम जीते हो अर्थ दुख सुखादि के पश्य नहीं हो तो बलकरिकै रीते कहे खाली बपुरा कहे दीन जे सुर औ नर हैं ते तुमको जोतिषको कहे कहां हैं औ कुल में चाहे प्रतापादि करि बड़ो होइ चाहे छोटोई जो मतिपुरुषन पड़ो होत है सो ब- डोई रहत है यासों या जनायो कि जो प्रतिपुरुष बड़ो है ताके कुल में लघु होड तो बड़ो है श्री तुम मतिपुरुषान हूं घड़े हो औ तुम्हारे दुःख सुखादि जीति की सामर्थ्य है तासां तुम समान कोऊ नहीं है अथवा और कोई अपने कुलमें बड़ो लघु होत है अर्थ कोऊ पाणी बड़ो भयो को छोटो भयो औ ई कहे जनक प्रतिपुरुषान बडो सो बड़ो कहे बड़े से पड़े हैं अर्थ इनके कुल में क्रमों एक से एक बड़े होत आवत है २५ ।। MAGLIA