पृष्ठ:रामचंद्रिका सटीक.djvu/६४

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५६ रामचन्द्रिका सटीक। थली। वितान श्वेत श्याम पीत लाल नीलका रेंगे।मनो दुहू दिशान के समान बिंब से जगे ३६ ।। ३२ । ३३ । ३४ । ३५ । ३६ । ३७ रूप जो सौंदर्य है ताके अनुरूप सदृश अर्थ अतिसुदर ३८ जा मडप में विरचि जे ब्रह्मा हैं तिनके वासगृह की ऐसी नियम को थमन की राजिका पगति रची अर्थ ब्रह्मा के मदिर सदृश मडप बन्यो है विचित्र वाससीनि पाठ हो तो विचित्र पास- सीनि कहे विचित्र पस्नन करिकै अर्थ परदान करिक पभरानिका रची है बनी अर्थ अनेक रंग के परदा लगे हैं पितान चॅदोषा श्याम को बैंजनी नीलिका जो लील है तासों रँगे हरिण आनो मानो भू भाकाश के दूनों दिशा हैं जिनके परस्पर समान विष कहे प्रतिबिंब से जगे हैं अर्थ भूमें जे बिछावने हैं तिनके प्रतिबिंब आकाश में जगे हैं और माकाश में वितान है, तिनके प्रतिबिंब भूमें जगे हैं यासों या जानो जहाँ जा रंग को वितान तन्यो है सहा ताही रंगके पिछावने हैं "विम्बन्तु प्रतिबिम्पीति मेदिनी "३६ ॥ पद्धटिकाछंद ॥ गजमोतिन की अवलीअपार। तह कल- शन पर उरमति सुढार ॥ शुभपूरित रति जनु रुचिरधार । जहँ तहँ अकाशगगा उदार ४० गजदंतनकी अवली सु. देश । तहँ कुसुमराजि राजित सुवेश ॥ शुभ नृपकुमारिका करति गान । जनु देविन के पुष्पकविमान ३१ तामरसछंद ॥ इत उत शोभित सुंदरि डोलें। अर्थ अनेकनिबोलनि बोलें। सुखमुखमंडल चित्तनिमोहैं।मनहुँ अनेक कलानिधिसोहैं ४२ भृकुटी विलास प्रकाशित देखे। धनुष मनोज मनोमय लेखे॥ चरचितहासचन्द्रिकान मानो । सुखमुख वासनि वासित जानो ४३॥ मंडप की रति कहे पीतिसो पूरित मानो सचिरधार कहे प्रवाहन करिकै मंडप में जहां तहां उदार सुंदर आकाशगंगाएँ अर्थ गजमोतिनकी गाला ते मानों अनेक धारा है मंडप में प्रारशिगगा रामती ४० गजवंत जे टोड़ा तिनकी पाली सुदेश कई मुदर रौसमुक्त बनी पुष्पयुक्त श्राका