रामचन्द्रिका सटीक । रत्नाकर बन्यो अति चित्त चचल जानिये ॥ शुभ शेषफणि मणिमाल पलिका परति करति प्रबन्धजू । करि शीश प- श्चिम पाय पूरब गात सहज सुगन्धजू ३२ वह हरी हठि हिरण्याक्ष देयत देखि सुदैर देह सों। वरवीर यज्ञ वराह ब- रही लई छोनि सनेह सौ ॥ गई विह्वल अग पृथु फिर सजे सकल शृंगारजू । पुनि कछुक दिन वशभई ताके लियो सर- बस सारजू ३३ वह गयो प्रभु परलोक कीन्हो हिरणकश्यप नाथजू । तेहि भौति भांतिन भोगयो भ्रमि पल न छोड्यो साथजू ॥ वह असुर श्रीनरसिंह माखो लई प्रबल खड़ाइके। लैदई हरि हरिचन्द्र राजहिं बहुत जो सुख पाइकै ३४ हरि- चन्द्र विश्वामित्र को दह दुष्टता जिय जानिके । तेहिं बरो परिबडबरहीं विप्र तपसी जानिकै ॥ बलिबांधि बल बल लई पावन दई इंद्रहि मानिके । तेहि इंद्र तजि पति को अर्जुन सहसभुजको जानिके ३५ तब तासु मद छवि छक्यो अर्जुन हत्यो ऋषि जमदग्निजू । परशुराम सो सकुल जाखो प्रवल बलकी अग्नि ॥ तेहि बेर तवहीं सकल क्षत्रिन मारि मारि बनाइके। यकईस बेरा दई विप्रन रुधिरजल अन्ह- वाइके ३६ वह रावरे पितु करी पत्नी तजी विप्रन थूकिकै । अरु कहत हैं सब रावणादिक रहे ताकहँ ढूंढ़िक ॥ यहि लाज मरियत ताहि तुमसौं भयो नोतो नाथजू ॥अब और मुख निरखें नज्यो त्यो राखियो रघुनाथजू ३७ सोरठा ॥ प्रातभये सब भूप पनि बानि मंडप में गये। जहां रूप अनुरूप ठौर और सब शोभिने २८ नगराचवंद ॥रत्री विरनि वाससी निधनराजिका भली। नवा तहा विलापने वने घने थली
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