पृष्ठ:रामचंद्रिका सटीक.djvu/७६

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७२ रामचन्द्रिका सटीक। भृगुनाथ जबै । कहि रामहि लै घर जाहु अबै ॥ इनपै जग जीवत जी बचिहौं। रणहाँ तुमसों फिरिकै रचिहौ ३० दोहा॥ निजअपराधी क्यों हतों गुरुअपराधी छॉड़ि । ताते कठिन कुठार अब रामहिं सो रणमॉड़ि ३१ ॥ घड़यानलरूपी जो हमारो फोप है सो इनको लोप भस्म कियो चाहत है २ | २६ शत्रुघ्न की यह बात सुनि भरत सों कयो कि तुम रामचन्द्र को लैकै घर बाहु इन पै शत्रुघ्न पै युद्धकरि जो जीवत बचिहौं तप तुम सौ रण करिहौं ३० गुरु अपराधी रामचन्द्र निम अपराधी शत्रन सरस्वती उतार्थः निगवे अपनाते हमते इति है अपराध कहे अन्य अधिक इति है धी | बुद्धि जिनकी इहाँ बुद्धि उपलक्षणमात्र है बुद्धिपद ते बुद्धिबल विधादि जानी ऐसे जे रामचन्द्र हैं तिनको कैसे मारौं अर्थ इनके मारिचे को समर्थ नहीं हौं फेरि कैसे हैं ये गुरु ने शिव हैं तिनहुँन ते अपराधी कहे बल विद्यादि करि अधिक हैं जिनको शिवह ध्यान करत हैं ताले मारिष की आशा करि छोडिक हे कठिनकुठार ! रासयन्द्रहीको सोरण कहे स्तुति सौ रणसों मादि कहे युक्त करौ अर्थ रामचन्द्रकी स्तुति करो जो कहौ फुगर तौ बोलत नहीं कैसे स्तुति करि है तो सब में अभिमानी देवता रहत है ता करिकै स्तुति करिबे को समर्थ है जैसे समुद्र को अभिमानी देवता रामचन्द्र की स्तुति करयो है श्री लंका हनुमान को रोक्यो है ३१ ॥ परशुराम-विजयछंद ॥ भूतलके सब भूपनको मद भोजन तो बहुभांति कियोई । मोदसों तारकनन्दको मेद पछचावरि पान सिरायो हियोई। खीर षडाननको मद के. शव सो पलमें करि पान लियोई। राम तिहारेइ कंठको शोषित पानको चाहे कुठार कियोई ३२ लक्ष्मण-तोटक ॥ जिनको सुअनुग्रह वृद्धि करै । तिनको किमि निग्रह चित्त परै| जिनके जग अक्षत शीश धरै। तिनको तन सशन कौन करे ३३ राम-मदिराछद । गठकुठार यशै अपहार